नकारात्मक भूमिकाओं को यादगार बनाने वाली अनन्या खरे

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नकारात्मक भूमिकाओं को यादगार बनाने वाली अनन्या खरे

छाया : स्व संप्रेषित  

• सीमा चौबे 

फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में जहां अभिनेत्रियों ने सकारात्मक भूमिकाओं से दर्शकों का दिल जीता है, वहीं खलनायिका के रूप में भी कुछ खूबसूरत हसीनाओं ने ज़बरदस्त नाम कमाया है। ऐसी ही अभिनेत्रियों में शामिल हैं रतलाम में जन्मी प्रीति उर्फ़ अनन्या खरे। उनकी गिनती उन अभिनेत्रियों में होती है, जिन्होंने अपनी अभिनय क्षमता से नकारात्मक किरदारों को भी यादगार बना डाला है।

रतलाम में श्री विष्णु खरे और श्रीमती सुधा शर्मा (शादी के बाद कुमुद खरे) के घर 16 मार्च 1968 को जन्मी अनन्या स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही थियेटर से जुड़ गई थीं। उनकी परवरिश एक उदार वैचारिक वातावरण में हुई। उनके पिता देश के जाने-माने पत्रकार, लेखक, अनुवादक और फ़िल्म समीक्षक थे। उन्होंने उज्जैन, रतलाम और इंदौर में अपने विद्यार्थियों को अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ाया, वहीं हिन्दी साहित्य में एमए उनकी माँ भी अध्यापक रहीं।

परिवार में पढ़ने-लिखने के माहौल का ही असर था कि तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी अनन्या का रुझान बचपन से ही अभिनय, नृत्य और साहित्य के प्रति रहा। विष्णु जी बच्चों को संगीत और थियेटर से जुड़े हर कार्यक्रम ले जाते। इस तरह अनन्या को कला और कलाकारों का सानिध्य बचपन से ही मिला और अभिनय के क्षेत्र में उनके कदम बढ़ते चले गये।

जब वे 3 महीने की थीं, तभी विष्णु जी को काम के सिलसिले में परिवार सहित दिल्ली आना पड़ा। अनन्या ने 12वीं तक की शिक्षा दिल्ली के होली चाइल्ड औक्सिलियम स्कूल से प्राप्त की। वे साहित्य और रंगकर्म में ही अपना भविष्य संवारना चाहती थीं, इसलिए 11वी में उन्होंने कला, साहित्य, इतिहास, दर्शन और सामाजिक विज्ञान विषयों का चयन किया। उनकी पढ़ाई और अभिनय साथ-साथ चलते रहे।

8वीं कक्षा के दौरान गर्मियों की छुट्टियों में उनका दाखिला बाल भवन में करवा दिया गया। जहाँ उन्होंने लोक नृत्य, लोक संगीत के अलावा ओडिसी नृत्य तथा तबला बजाना भी सीखा। उस समय उनके पिताजी साहित्य अकादमी में उप सचिव थे। उसी इमारत में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के नाटकों की रिहर्सल होती थी। एनएसडी की एक महीने की ग्रीष्मकालीन कार्यशाला में हिस्सा लेकर अनन्या ने पहली बार एक पेशेवर अभिनेत्री के तौर पर इसी बड़े मंच से अभिनय की शुरुआत की, जहाँ उन्होंने परियों की जर्मन कहानी पर आधारित नाटक ‘बिल्ली का खेल’ में जादूगर की भूमिका निभाई। इसे लोगों ने बहुत पसंद किया और उनके निभाये किरदार को अख़बारों में खासी जगह मिली। इसके बाद बतौर बाल कलाकार उन्होंने राजेन्द्रनाथ की संस्था ‘अभियान नाट्य समूह’ के कई नाटकों में कई किरदार निभाये। बाल भवन, एनएसडी और 'अभियान' से मिले अनुभव से उन्हें एक दिशा मिली। अब वे स्कूल से आने के बाद शाम को नियमित रूप से वे ‘अभियान ग्रुप’ में जाने लगीं।

वर्ष 85-86 में दूरदर्शन पर प्रसारित प्रेमचन्द के उपन्यास ‘निर्मला’ पर आधारित धारावाहिक में उन्हें मुख्य भूमिका मिली। 13 कड़ियों वाले इस धारावाहिक को उम्मीद से कहीं अधिक प्रतिसाद मिला। दूरदर्शन के ‘मैला आंचल’, ‘हम लोग’ और 'देख भाई देख' जैसे धारावाहिकों से मिली पहचान के बाद अनन्या ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह उनके अभिनय का ही कमाल था कि एक के बाद एक कड़ियाँ जुड़ती गईं और उन्हें लगातार काम मिलता गया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जर्मन साहित्य में परास्नातक (पीजी) की पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई बार एनएसडी में दाखिला लेने का मन बनाया लेकिन उनके हाथ में एक साथ कई काम होने के चलते यह हसरत अधूरी रह गई। इस बीच पिताजी के कहने पर उन्होंने दो साल केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की तैयारी की और प्रीलिम्स क्वालीफाई भी कर लिया, लेकिन दोनों ही बार पर्चे फूट जाने से मुख्य परीक्षा रद्द हो गई और उन्होंने सिविल सेवा में जाने इरादा छोड़ दिया। 

1992 में उन्हें जया बच्चन के धारावाहिक ‘सात फेरे’ में काम करने का अवसर मिला। इससे जुड़ा किस्सा याद करते हुए अनन्या बताती हैं - “निर्मला में निभाया मेरा किरदार गुलज़ार साहब के जेहन में था। हालांकि उन्होंने यह धारावाहिक देखा नहीं था, लेकिन इस शो में मेरे किरदार की हुई चर्चा से वे बखूबी वाकिफ़ थे। इस धारावाहिक को निर्देशित कर रहे गुलज़ार साहब ने ही जया जी को मेरा नाम सुझाया। जब जया जी दिल्ली आईं तो उन्होंने पिताजी - जो उस समय टाइम्स ऑफ़ इंडिया में उप सम्पादक थे, के जरिये एक पत्र भेजकर मुझे मिलने के लिए बुलाया। यह सब मुझे परी कथा की तरह लग रहा था, मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा कुछ होने जा रहा है।”

जया जी ने मुलाक़ात के बाद अनन्या को ‘सात फेरे’ के लिये चुन लिया और मुम्बई की टिकट भी हाथ में थमा दी। हालांकि इसके पहले स्कूल के समय अनन्या ‘इंडिया मोशन पिक्चर’ के टैलेंट हंट - जिसके चेयरमैन सुनील दत्त थे, के लिए मुंबई जा चुकी थीं। इस प्रतियोगिता में दूसरे नम्बर पर रहीं अनन्या की दत्त साहब ने ट्रॉफ़ी देते हुए  खूब तारीफ़ भी की।  

बहरहाल, अनन्या जब मुम्बई पहुँची तो गुलज़ार साहब ने उन्हें यह भूमिका देने से मना कर दिया। दरअसल उन्हें इस शो में परीक्षित साहनी की पत्नी की भूमिका के लिये उपयुक्त कलाकार की तलाश थी, लेकिन उम्र के लिहाज से अनन्या उस किरदार में फिट नहीं बैठ रही थीं। थियेटर कर चुकी अनन्या ने निराश होने के बजाय गुलज़ार साहब के सहायक सलीम आरिफ़ से एक सूती साड़ी, लम्बी आस्तीन का ब्लाउज़, मोटा चश्मा, बड़ी सी बिंदी और टूथपेस्ट माँगा। मेकओवर के बाद जब वे गुलजार जी के सामने पहुँची तो उन्होंने फ़ोटोशूट करवाकर शाम को बताने को कहा। अगले दिन खुद गुलज़ार साहब ने फ़ोन पर बताया कि उन्हें इस भूमिका के लिए चुन लिया है। इसके बाद अनन्या ने जया बच्चन, गुलज़ार साहब के अलावा ऋषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी, रूपा गांगुली, आशा पारेख, महेश भट्ट और इंडस्ट्री के कई अन्य जाने-माने निर्देशकों के साथ काम किया।

1994 में केबल चैनल्स की शुरुआत में ज़ी टीवी के लिये अनन्या को लेख टंडन के धारावाहिक दरार और सोनी चैनल के ‘आहट’ के धारावाहिकों में मौक़ा मिला।

वर्ष 1987 में उन्होंने फ़िल्म ‘उत्तेजना’ से बॉलीवुड में प्रवेश किया। साल 1994 में आई 'जालिम' उनकी दूसरी हिन्दी फिल्म थी। इसके बाद वह 'शूल' में नजर आईं। हिन्दी फ़िल्मों में उन्हें बड़ी कामयाबी मधुर भंडारकर की फिल्म 'चांदनी बार' से मिली। हालांकि बार डांसर के किरदार और फिल्म की भाषा से नाखुश अनन्या ने हाँ करने से पहले पिताजी से सलाह लेना उचित समझा। वे नहीं चाहती थीं कि इस तरह के किरदार निभाने के बाद कोई उन पर या परिवार पर उंगली उठाये। पिताजी ने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहा “यह तुम नहीं हो, तुम्हें केवल एक किरदार निभाना है। अपने व्यक्तित्व से अलग इस किरदार को निभाना तुम्हारे लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। विष्णु जी की सलाह कारगर रही। इस फ़िल्म में अनन्या  की दमदार अदाकारी ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार दिलवाया।

इसके अगले ही साल फिल्म 'देवदास' में उन्होंने शाहरुख की भाभी की भूमिका की, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस फ़िल्म में कुमुद के नकारात्मक किरदार के साथ वे घर-घर में मशहूर हो गईं। लेकिन कम ही लोगों को पता है कि संजय लीला भंसाली ने पहले इस भूमिका के लिए उन्हें मना कर दिया गया था। कारण वही मासूम सा चेहरा और उम्र। उन्होंने कहा कि जिस उम्र की महिला इस किरदार के लिए चाहिए आप उससे छोटी और मासूम सी लगती हैं। हमें थोड़ी सख्त दिखने वाली अभिनेत्री की तलाश है। लेकिन थोड़ा सोचने के बाद संजय  जी ने उनका गेटअप बदलवाया और कहा आप अपने व्यक्तित्व से बिल्कुल उलट व्यवहार कैमरे के सामने करें। ऑडिशन के बाद अनन्या को इस रोल के लिए चुन लिया गया।

'देवदास' करने के बाद उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव यह आया कि उन्हें नकारात्मक किरदार ही मिलने लगें। लेकिन अच्छी बात यह रही कि उन्हें नकारात्मक ही सही, लेकिन लगातार सशक्त किरदार मिलते रहे। अब उन्हें चुनौतीपूर्ण भूमिकाएँ निभाने में ज्यादा खुशी मिलती है। वे कहती हैं कि फ़िल्म, कहानियों, नाटक सभी में जब तक खलनायक का किरदार मजबूत नहीं होता, तब तक इसे दिलचस्प बनाना असंभव है, क्योंकि कहानी में नकारात्मक पात्रों और चुनौतियों के बिना कहानी आगे नहीं बढ़ सकती।"

इसके पहले अनन्या मंजू असरानी द्वारा निर्देशित राजस्थानी फ़िल्म 'दूध रो कर्ज' और एक हरियाणवी फ़िल्म 'छन्नो' में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुकी थी।

वर्ष 2004 में अनन्या अमेरिका निवासी डेविड बेलोस से शादी कर कुछ वर्षों के लिए वहीं चली गईं। डेविड पेशे से शिक्षक होने के अलावा एक संगीतकार, कम्पोज़र, पेशेवर गिटार वादक, आर्टिस्ट और लेखक भी थे। उनके द्वारा लिखित एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई। डेविड से उनकी मुलाक़ात 2003 में इटली में हुई। दरअसल दोनों बौद्ध धर्म से जुड़े थे। हालाँकि डेविड से मिलने के पहले अनन्या ने शादी के बारे में कभी गंभीरता से नहीं सोचा था, लेकिन उनके व्यक्तित्व से प्रभावित अनन्या ने यह जानते हुए कि डेविड एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, उनसे शादी का निर्णय लिया और लॉस एंजिल्स में पहले बी.एड, किया और बतौर शिक्षक, स्पेशल बच्चों के अलावा हाई स्कूल के बच्चों को अंग्रेज़ी पढ़ाने लगीं।

2011 में वे डेविड के साथ भारत आ गईं। ख़ास बात यह रही कि स्वदेश वापसी से पहले ही अनन्या के हाथ में दो प्रोजेक्ट थे। वे खुशकिस्मत रहीं कि उनके पास काम की कभी कमी नहीं रही। मुंबई आने के बाद दूसरी पारी में भी उन्हें काम आसानी से मिलता गया। उन्होंने ज़ी टीवी, सोनी एप, स्टार प्लस, कलर्स, लाइफ ओके सहित कई चैनल्स पर ‘मेरी माँ, 'पुनर्विवाह', 'लाडो 2' अमृत मंथन, 'ये है आशिकी', 'मेरे अंगने में', 'पंडया स्टोर' और रंगरसिया सहित कई धारावाहिकों में काम किया।

सब कुछ उनके मन मुताबिक चल चल रहा था, इसी बीच 2018 में उनके पिता और 2023 में पति का निधन हो गया। इन दोनों घटनाओं ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। जीवन के दो मजबूत स्तम्भों का चले जाना, उनके लिए बहुत बड़ी क्षति थी। वे कहती हैं “पिताजी मेरे बहुत क़रीब रहे। उनकी वजह से ही मेरी ज़िन्दगी एक ख़ास दिशा में गई। अगर वो नहीं होते तो इस मुकाम पर पहुंचना मेरे लिए आसान नहीं होता। पापा की सीख ने हमेशा ज़िन्दगी को मजबूती से जीने में मदद की है। जीवन के मूल्यों पर हमेशा उन्होंने महत्व दिया। जो मुझे आज भी मजबूती देते हैं। शादी के बाद शिक्षक बनने की तैयारी में डेविड ने बहुत साथ दिया। परिवार नहीं बढ़ाना हम दोनों का निर्णय था, जिससे हम डेविड की सेहत के पर पूरा ध्यान दे सकें।”

पिता के निधन के तीसरे दिन ही शूटिंग पर लौटना, उनके लिए बहुत पीड़ादायक था, लेकिन भावनाओं को परे रख वे काम करती रहीं। ऐसी ही स्थिति उनके पति के नहीं रहने पर भी बनी, जब उन्हें एक हफ़्ते के अंदर ही काम पर लौटना पडा। वे बताती हैं “निचिरेन बुद्धिज्म ( व्यक्तिगत सशक्तिकरण और आत्म-सुधार पर जोर देता है) के अभ्यास और परिवार से मिले सहयोग से जीवन में आई हर चुनौती से उबरने में उन्हें हमेशा मदद मिली।  

फिल्मों और टीवी के अलावा अनन्या ओटीटी का रुख भी कर चुकी हैं। साल 2020 में वह 'बेबाकी' नाम की वेब सीरीज में नजर आई थीं। इस शो में उन्होंने बेनज़ीर अब्दुल्ला का किरदार निभाया था। ऑल्ट बालाजी के इस शो से उन्होंने काफी वाहवाही बटोरी थी।

क्या आपने कभी नेगेटिव रोल करने से मना नहीं किया! इस सवाल पर अनन्या कहती हैं - “किस्मत और आपके अपने निर्णय आपको एक मुकाम तक पहुंचाते हैं। काम तो काम होता है। अगर कोई काम इज़्ज़त के साथ करने का मौका मिल रहा है तो मना करने का तुक नहीं बनता है। ईमानदारी के साथ काम करना ज़्यादा ज़रूरी है। हालांकि ऐसा कई बार हुआ जब मन मुताबिक काम नहीं मिला, लेकिन इससे मै निराश कभी नहीं हुई। मैंने अपने काम को लेकर कभी कोई अफ़सोस नहीं किया है। जो नहीं मिला, उसकी कोई वजह होगी, इसे मैंने हमेशा माना है, इसलिये मलाल नहीं हुआ। ख़ास वक़्त पर ख़ास  जगह पर होना मेरे लिए ज़रुरी होता है और मैं वहां पहुँच जाती हूँ। भविष्य में भी मैं चुनौतीपूर्ण चरित्र निभाना चाहती हूं।"

फ़िलहाल उनका पूरा ध्यान अभी माँ की सेहत पर है, इसलिये वे किसी बड़ी फ़िल्म के बजाय ओटीटी के कुछ प्रोजेक्ट्स पर ही काम कर रहीं हैं। पढने-लिखने की शौक़ीन अनन्या को जब भी समय मिलता है, वे साहित्यिक किताबें पढ़ना और डॉक्यूमेंट्री  फ़िल्में देखना पसंद करती हैं।

उपलब्धियां 

•  आधी आबादी संस्था नई दिल्ली द्वारा  वूमन अचीवर्स  अवार्ड (2018)

•  इंडियन नेशनल अवार्ड - ‘चाँदनी बार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार (2002)

•  बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा ‘चाँदनी बार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार (2002)

•  ज़ी सिने अवार्ड्स - सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (चाँदनी बार) के लिए नामांकित

•  साहित्य कला परिषद नई दिल्ली  द्वारा (मंच-) ऐलिस इन इफिनिया के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार (1986)

•  इन्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ फिल्म प्रोड्यूसर एसोसिएशन - द्वारा सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (देवदास) के लिए नामांकित (2003) 

 

अभिनय

फिल्में : उत्तेजना, दूध रो कर्ज, धात्री पन्ना, गुलकी बानो, मिट्टी और चाँद, जालिम, चांदनी बार, देवदास, सब कुशल मंगल है, पगलेट, Foreign, The Boss Comes To Dinner आदि

टीवी धारावाहिक : आहट (सोनी टीवी), सीआईडी (सोनी टीवी), ओ’ मारिया (सोनी टीवी), जमीन आसमान (ज़ी टीवी), काल कोठरी (सोनी टीवी), एक कहानी (ज़ी टीवी), उल्लंघन (दूरदर्शन), मैला आँचल (दूरदर्शन), बंजारा गेस्ट हाउस (स्टार टीवी), ये शादी नहीं हो सकती (सोनी टीवी), जी साहब (सोनी टीवी) उजाले की ओर (दूरदर्शन), दरार (ज़ी टीवी), महायज्ञ (सोनी टीवी), बूँद-बूँद (दूरदर्शन) निर्मला (दूरदर्शन)। पुनर्विवाह (ज़ी टीवी)। मेरे अंगने में (स्टार टीवी) लाडो-2 (कलर्स), बीच वाले (सोनी सब टीवी) पंडया स्टोर (स्टार टीवी)

• अनेक विज्ञापनों में काम करने के अलावा उन्होंने अनुवादक ("Harry Potter and the Sorcerer's Stone", "Asterix and Obelix", History Channel, National Geographic Channel) और वॉइस ओवर (Free Willy, All India Radio) आर्टिस्ट के रूप में भी काम किया है।

सन्दर्भ स्रोत : अनन्या खरे से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित 

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