दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि गर्भ में बच्चे का लिंग पता लगाने की प्रथा समाज के लिए बेहद खतरनाक है। यह न केवल महिलाओं के प्रति भेदभाव को बढ़ावा देती है बल्कि लड़की के जीवन की अहमियत को भी कम करती है।
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस स्वर्णाकांता शर्मा ने कहा कि लिंग जांच जैसी प्रथाएं ऐसी सोच को जन्म देती हैं, जिसमें बेटियों को बोझ समझा जाता है, न कि परिवार के समान सदस्य के रूप में। उन्होंने कहा कि ऐसे कृत्य सामाजिक चेतना को खोखला कर देते हैं और एक भेदभाव-मुक्त समाज की उम्मीद पर चोट पहुंचाते हैं।
आरोपी की जमानत खारिज
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह यह टिप्पणी उस समय की जब उन्होंने एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की। आरोपी पर आरोप है कि उसने एक महिला की तीसरी गर्भावस्था के दौरान अवैध रूप से अल्ट्रासाउंड कर भ्रूण का लिंग बताया जो बाद में ऑपरेशन के दौरान मौत का शिकार हो गई।
जांच में हुआ था खुलासा
दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी और उसका बेटा दोनों मोटर मैकेनिक हैं, लेकिन उन्होंने साइड बिजनेस के तौर पर अवैध अल्ट्रासाउंड करना शुरू कर दिया था। उनका उद्देश्य सिर्फ भ्रूण का लिंग बताना और गर्भपात को बढ़ावा देना था। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते कहा कि इस तरह की हर घटना समाज में यह संदेश देती है कि कुछ जिंदगियों की कीमत सिर्फ उनके लिंग के कारण कम है। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि इंसानियत के खिलाफ भी अपराध है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी की हिरासत में पूछताछ जरूरी है ताकि अन्य संबंधित लोगों की पहचान की जा सके और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। जस्टिस स्वर्णकाता शर्मा ने सख्त शब्दों में कहा कि ऐसे मामलों में नरमी दिखाना गलत संदेश देगा। समाज में हर लड़की और हर अजन्मी बच्ची के जीवन और सम्मान की रक्षा के लिए कड़ा रुख अपनाना जरूरी है।



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