कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशाखा गाइडलाइंस

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कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशाखा गाइडलाइंस

विधि-विमर्श 

अगस्त, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की पीठ ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसे विशाखा जजमेंट के नाम से जाना जाता है। इन दिशा-निर्देशों के चलते ही कई स्थानों पर कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल की उत्पीड़नकारी परिस्थितियों से लड़ने या उत्पीड़कों को दंडित कर पाने का रास्ता मिला।

सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा जजमेंट राजस्थान के महिला कल्याण के कार्यक्रम ‘महिला सख्या’ में कार्यरत एक साथिन भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना के केस आने के बाद दिया था। भंवरी देवी ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए गांव के एक दबंग परिवार में बाल विवाह रोकने के लिए थाने में शिकायत की थी, जिससे नाराज़ उक्त परिवार के चार लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था। मामला बाद में कोर्ट में पहुंचा और उसने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मील का पत्थर साबित होने वाला फैसला सुनाया था कि हर महिला कर्मचारी का कार्यस्थल पर यौन हिंसा से बचाव उसका संवैधानिक अधिकार है और इसे सुरक्षित करने की ज़िम्मेदारी मालिक एवं सरकार दोनों पर डाली गई। विशाखा जजमेंट के तुरंत बाद तत्कालीन केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश भर के संस्थानों तथा शिक्षण संस्थानों को निर्देश जारी किया (13 अगस्त 1997) कि सभी संस्थान एवं मालिक अपने यहां यौन हिंसा से बचाव के लिए गाइडलाइन तैयार करें। इसी जजमेंट को आधार बनाते हुए दिल्ली में जेएनयू तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने यहां अधिनियमों का निर्माण किया है।

यह गाइडलाइंस उन सभी संस्थानों पर लागू है, जहां महिला किसी भी रूप में काम करती है, फिर वह किसी काम के लिए आती हो। कार्य स्थल पर होने वाली हिंसा में सभी बातें एवं व्यवहार आती हैं, जो किसी महिला को अपमानित करती हो या फिर यौन हिंसा हो या फिर अश्लील व्यवहार हो। संस्थान में एक शिकायत समिति गठित की जाती है, जिसमें 50 फीसदी महिला सदस्य रहती हैं। इस समिति में यौन शोषण के मुद्दों पर काम कर रही किसी बाहरी गैर सरकारी संस्था समिति से अपेक्षा होती है कि वह संवेदनशील हो एवं उचित कार्रवाई करे।

संपादन – मीडियाटिक डेस्क

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