इलाहाबाद हाईकोर्ट : पिता को प्राकृतिक

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इलाहाबाद हाईकोर्ट : पिता को प्राकृतिक
अभिभावक' मानने वाला कानून पुराना

प्रयागराज। इलाहबाद  हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में 12 साल की नाबालिग लड़की की कस्टडी (Custody) उसकी मां को सौंपने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ी बेटी के शारीरिक और भावनात्मक विकास (Physical and emotional development)  के लिए मां का साथ जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि 12 साल की उम्र में बेटी को मां के साथ रहने का अधिकार है। "यह वह उम्र है जब लड़की शारीरिक और भावनात्मक बदलावों से गुजरती है। मां ही उसे मासिक धर्म, स्वच्छता और अन्य निजी मुद्दों पर सही मार्गदर्शन दे सकती है "।

इसके साथ ही कोर्ट ने हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 पर सवाल उठाया, जो पिता को नाबालिग बच्चों का प्राकृतिक अभिभावक (Natural Guardian) मानती है। कोर्ट ने कहा, "यह कानून पुरानी पितृसत्तात्मक सोच (Patriarchal thinking) पर आधारित है। आज के समय में लैंगिक समानता और बच्चे के हित (Gender equality Child welfare) को प्राथमिकता देनी चाहिए।"

दंपति का विवाह 2013 में हुआ था और उनकी एक बेटी है जो अब 12 साल की हो चुकी है। पति भारतीय रेलवे में डिप्टी चीफ इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं जबकि पत्नी दिल्ली स्थित सेंटोश यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। पति की नौकरी और पोस्टिंग के कारण दोनों को अलग अलग जगहों पर निवास करना पड़ा और बाद में दोनों के आपसी संबधों में दरार आ गयी। पत्नी ने नवंबर 2022 में तलाक के लिए आवेदन किया और अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी के लिए आवदेन किया जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज करते हुए पिता को बेटी की कस्टडी दी और माँ को सप्ताह में दो बार उससे मिलने की अनुमति मिली। 

इस पर महिला ने सेशन कोर्ट में निर्णय पर अपील की जिसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने यह विशेष रूप से नोट किया गया कि नाबालिग ने अपने पिता के साथ रहने की स्पष्ट इच्छा व्यक्त की थी, और इसलिए, यह माना गया कि पिता के पास कस्टडी बच्चे के सर्वोत्तम हित में होगी। इसके अतिरिक्त, अपीलीय अदालत ने पाया कि बच्चे के दादा-दादी पिता के साथ रह रहे थे, जिससे पिता के निवास पर एक स्थिर और पोषण वातावरण में योगदान मिला। इस आदेश के विरुद्ध महिला ने 10.09.2024 को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 

अपीलार्थी द्वारा हाईकोर्ट को बताया गया कि यौवन में प्रवेश करने वाली नाबालिग लड़की विकास के एक महत्वपूर्ण चरण से गुजरती है, जिसमें महत्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन और भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। लड़की की सुरक्षा, गोपनीयता और भावनात्मक कल्याण, देखभाल करने वाले और विश्वासपात्र के रूप में माँ की महत्वपूर्ण भूमिका,  संवेदनशील और व्यक्तिगत मामलों पर चर्चा करने में बच्चे की सहजता और एक असमर्थक या अनुचित वातावरण से उत्पन्न होने वाले आघात के संभावित जोखिम आदि पर पर्याप्त रूप से विचार करने में ट्रायल कोर्ट विफल रहा है।

हाई कोर्ट ने व्हाट्सएप चैट और गूगल मैप्स डेटा का हवाला देते हुए साफ किया कि पत्नी ने पति के दावे के अनुसार 6 अगस्त 2022 को घर नहीं छोड़ा बल्कि 26 अक्टूबर 2022 को घर छोड़ा था । कोर्ट ने कहा कि पति ने धोखे से पत्नी का भरोसा हासिल कर उसे घर खाली करने के लिए मजबूर किया और फिर बेटी को मां से अलग कर दिया। 

हाईकोर्ट ने क्या कहा ? 

 जस्टिस विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अपने फैसले में कड़ी टिप्पणी करते हुए पिता पर आरोप लगाया कि उसने योजनाबद्ध तरीके से बेटी को मां से अलग किया था। कोर्ट ने कहा कि पति ने पत्नी को सरकारी क्वार्टर खाली करने के लिए बहकाया और फिर बेटी को लखनऊ से अपने गाजीपुर स्थित पैतृक घर ले गया। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 12 साल की उम्र में बेटी के लिए मां का साथ विशेष रूप से जरूरी है क्योंकि यह वह संवेदनशील उम्र है जब लड़की शारीरिक और भावनात्मक बदलावों से गुजरती है। कोर्ट ने कहा, "मां ही बेटी को मासिक धर्म, स्वच्छता और अन्य निजी मुद्दों पर सही मार्गदर्शन दे सकती है। पिता चाहे कितना भी संवेदनशील क्यों न हो, वह मां की जगह नहीं ले सकता। ज़्यादातर मामलों में, साझा जैविक अनुभव के कारण माँ स्वाभाविक रूप से यौवन से गुज़र रही बेटी को समझने और उसका समर्थन करने के लिए बेहतर स्थिति में होती है।"

"माँ ने व्यक्तिगत रूप से मासिक धर्म, अन्य महिला-विशिष्ट परिवर्तनों का अनुभव किया है और ऐसे मुद्दों पर चर्चा करने में सहजता महसूस की है। लड़कियाँ अक्सर अपनी माँ से शरीर में होने वाले बदलावों, मासिक धर्म स्वच्छता आदि के बारे में बात करने में अधिक सहज महसूस करती हैं। माँ अक्सर भावनात्मक सामंजस्य में अधिक प्रभावी भूमिका निभाती है, एक प्राकृतिक देखभालकर्ता होने के नाते सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक बदलावों को नोटिस करने की अधिक संभावना होती है। समाज और परिवार की गतिशीलता अक्सर माँ और बेटी के बीच घनिष्ठ भावनात्मक बंधन को प्रोत्साहित करती है, खासकर किशोरावस्था के दौरान।" कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटी के जन्म का पूरा खर्च नाना ने उठाया था और यह साबित करता है कि मां का परिवार बेटी के प्रति पूरी तरह समर्पित रहा है। 

हाईकोर्ट ने हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 पर भी सवाल उठाया जो पिता को नाबालिग बच्चों का प्राकृतिक अभिभावक मानती है। कोर्ट ने कहा, "यह कानून पुरानी पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित है। आज के समय में लैंगिक समानता और बच्चे के हित को प्राथमिकता देनी चाहिए। विधायिका को चाहिए कि वह इन पुराने कानूनों में बदलाव करे ताकि एक समावेशी और लैंगिक रूप से तटस्थ दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके।" 

कोर्ट ने अपने आदेश में पिता को बेटी की कस्टडी मां को सौंपने का निर्देश दिया है। अगर पिता आदेश का पालन नहीं करता है तो चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (Child Welfare Committee) और पुलिस की मदद से बच्ची को मां के पास पहुंचाया जाएगा। कोर्ट ने लखनऊ के पुलिस आयुक्त को भी निर्देश दिया कि वह पिता पर नजर रखें ताकि वह कोर्ट के आदेश को नजरअंदाज न कर सके। हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि पिता को बेटी से मिलने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा रहा है और वह अदालत से विजिटेशन राइट्स (Visitation Rights) के लिए अलग से आवेदन कर सकता है। 

सन्दर्भ स्रोत : मूक नायक

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