सिने जगत में मध्यप्रदेश की महिलाएं 

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सिने जगत में मध्यप्रदेश की महिलाएं 

टेलीविजन, सिनेमा और रंगमंच

• शशांक दुबे

हिन्दी सिनेमा की जड़ें अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत से जुड़ी होने के कारण इसमें जितना योगदान पंजाब का और फिर कालांतर में महाराष्ट्र व दक्षिण भारत का रहा, उतना मध्यप्रदेश का तो नहीं रहा है। फिर भी यहाँ महिलाओं की उपस्थिति को निराशाजनक नहीं कहा जा सकता।

यदि हम अतीत के पन्नों को खंगालें तो हमारे सामने फिल्मों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली प्रदेश की सबसे पहली महिला सुशीला देवी पवार का नाम उभरता है। सन 1915 में ग्वालियर में जन्मी और वनमाला के नाम से पहचानी जाने वाली सुशीला देवी ने कई मराठी व हिन्दी फिल्मों में काम किया। नशीली आंखों वाली इस अभिनेत्री को मिनर्वा मूविटोन की महत्वपूर्ण फिल्म  ‘सिकंदर’ में नायिका की भूमिका मिली। उनके सामने थे नाटकीय अभिनय के दो उस्ताद – पृथ्वीराज कपूर ओर सोहराब मोदी। उनकी आंखों को ही केन्द्र में रखकर एक और मसाला फिल्म ‘शराबी आंखें’ भी बनी थी। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया और कई मंचों पर अरुणा आसफ अली के साथ शिरकत की उन्हें 1953 में ‘श्यामची आई’ फिल्म में श्रेष्ठ अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला, जो एक बड़ी उपलब्धि कही जाएगी।

भारतीय सिनेमा को प्रदेश के जिस नाम ने सबसे ज़्यादा सुसमृद्ध किया है वह लता मंगेशकर हैं। लता जी महिला पार्श्व गायन के पर्याय के रुप में स्थापित होकर पचास साल तक तत्कालीन युवा नायिका की आवाज़ बनी रहीं। अपनी विलक्षण गायन प्रतिभा के जरिए करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाली लताजी की आवाज़ में एक ऐसी गरिमा रही है, जो उनकी तमाम समकालीन और उत्तरकालीन गायिकाओं में नदारद है। 8 सितम्बर 1929 को इंदौर में जन्मी लताजी को अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका टाईम ने भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। उन्हें ‘भारतरत्न’ सम्मान भी मिला है ।

मंगेशकर परिवार की ही एक और महत्वपूर्ण सदस्य उषा मंगेशकर का जन्म भी इंदौर में ही (जुलाई 1935 में) हुआ था। अपलम चपलम (आज़ाद), चली चली कैसी हवा ये चली (ब्लफ़ मास्टर) और सांचा नाम तेरा (जूली) जैसे चुनिंदा हिट गीत गाने के बावजूद इनकी पहचान बरसों तक लताजी की बहन के रूप में ही रही। अन्य संगीतकारों का ध्यान भी उन पर गया और उन्हें ‘तू मुंगड़ा, मैं गुड़ की डली’ (इंकार), सुल्ताना-सुल्ताना, मेरा नाम है सुल्ताना (तराना) और गोरों की न कालों की (डिस्को डान्सर) जैसे हिट गीत गाने के भी अवसर मिलते रहे। फिल्म संतोषी माँ से उनके करियर में एक नया मोड़ आया और फिर कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सत्तर के दशक में जिन संवेदनशील अभिनेत्रियों ने दर्शकों के दिलों में मुकाम बनाया, उनमें महत्वपूर्ण नाम जया भादुड़ी का भी है। उनका जन्म अप्रैल 1948 में जबलपुर में हुआ था। अपनी पहली ही फिल्म ‘गुड्डी’ (1971) के जरिए हर घर में अपनी जगह बना देनेवाली जया भादुड़ी के व्यक्तित्व में सादगी, सहजता और निर्भीकता का अनोखा मिश्रण था। वे खूबसूरत तो नहीं थीं, लेकिन आकर्षक थीं। उन्हें नृत्य नहीं आता था, पर संगीत की समझ थी। लेकिन वह जमाना प्रतिभा की कद्र का था, ‘उपहार’, ‘पिया का घर’, ‘कोशिश’, ‘परिचय’ जैसी फिल्मों के माध्यम से जल्द ही उन्होंने सम्मानजनक जगह बना ली। तभी संघर्षशील अभिनेता अमिताभ से उनका प्रेम हुआ और घर बसा कर फिल्मों से एक तरह से सन्यास ले लिया। थोड़े अंतराल के बाद अस्सी के दशक में वे ‘नौकर’ व ‘सिलसिला’ में दिखाई दीं। कुछ साल पहले तक उन्हें ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘हजार चैरासी की माँ’, ‘पा’ आदि में देखा गया। आज भी उनके पास वही आवाज़ ओर वही अभिनय है, बस कमी है तो ‘गुड्डी’ के उस अल्हड़पन की, जिसने कभी दर्शकों का मन छुआ था और वे हर घर की बेटी बन गईं थी।

सिनेमा में अपनी कव्वाली के जरिए दर्शकों पर छा जाने वाली शकीला बानो भी का जन्म भोपाल में हुआ था, ताज्जुब नहीं, कि भोपाली उनका तखल्लुस बन गया। शकीला के पिता अब्दुर्ररशीद खान अपने जमाने के मशहूर कव्वाल थे। कहना न होगा, कि शकीला ने उनकी विरासत को न केवल बखूबी संभाला, बल्कि उसे नई ऊंचाईयों तक भी पहुंचाया। भोपाल की ही स्कूली छात्रा कनिका तिवारी की सबसे बड़ी उपलब्धि साढ़े 6 हजार लड़कियों में से फिल्म ‘अग्रिपथ’ के लिए ऋतिक रोशन की बहन की भूमिका के लिए चुना जाना है। उन्हें बाद में अधिक काम नहीं मिला।

गायन के क्षेत्र में एक चर्चित नाम ग्वालियर में जन्मी पार्श्व गायिका ममता शर्मा का भी है, जिन्हें ‘मुन्नी बदनाम हुई्’ गाने से बॉलीवुड में ख्याति मिली। इस गाने के लिए उन्हें स्क्रीन, फिल्मफेयर जैसे प्रतिष्ठित अवार्ड मिले। इससे पहले ममता भोजपुरी के गब्बर सिंह गाने से भी जानी जाती थी। ममता ने बंगाली और तमिल फिल्मों के लिए भी गाने गाए हैं। वैसे इस क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम इंदौर में जन्मी पलक मुछाल का है। ‘मेरी आशिक़ी’ (आशिक़ी), ‘फोटो कॉपी’ ( जय हो), ‘जुम्मे की रात’ (किक), ‘तेरी मेरी कहानी’ (गब्बर इज़ बैक), ‘प्रेम रतन धन पायो’ (शीर्षक गीत), ‘देख हजारों दफा’ ( रुस्तम) उनके गाए प्रमुख गीतों में से कुछ हैं। इंदौर की ही मीनल जैन ने अपना कैरियर ‘इंडियन आइडल’ और विभिन्न संगीत प्रतियोगिताओं से से शुरू किया और जल्द ही अपनी पहचान बना ली।  उनके गाए लोकप्रिय गीतों में ‘पलकें झुकाओ ना’ (फिल्म: सहर), ‘दुआ’ (फिल्म: नो वन किल्ड जैसिका), ‘बनारसिया’ (फिल्म: राँझना), ‘क्यूटी पाई’ (ऐ दिल है मुश्किल) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े शो मैन राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर रीवा की थीं -अभिनेता प्रेमनाथ और राजेन्द्रनाथ की सगी बहन । उनके पिता राय करतार नाथ मध्य प्रांत के उच्च पुलिस अधिकारी थे। कृष्णा जी की छोटी बहन उमा अपने समय के मशहूर खलनायक और अब चरित्र अभिनेता प्रेम चोपड़ा की सहधर्मिणी हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश की महिलाओं ने केवल परदे पर ही नहीं, उसके पीछे भी अपना योगदान दिया है। 4 अक्टूबर 1978 को सागर में जन्मी हनी तेहरान एक कुशल सहायक निर्देशिका व कास्टिंग डायरेक्टर है। ‘द ब्लू अम्ब्रेला’ (2005), ‘ओमकारा’ (2006), ‘आक्रोश’ (2010), ‘सात खून माफ’ (2011) उनकी महत्वपूर्ण फिल्में हैं। इसी प्रकार 11 नवंबर 1975 को ग्वालियर में जन्मी गीतिका टंडन ने ‘धूप’  (2003), ‘सिसकियाँ’ (2005) और ‘गुड ब्वॉय -बेड ब्वॉय’ (2007) में सहायक निर्देशिका की ज़िम्मेदारी निभाई है।

इसी श्रृंखला में भोपाल की शिल्पी दासगुप्ता का उल्लेख किया जा सकता है। उन्होंने  प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक सुभाष घई  के साथ कॅरियर की शुरुआत की और ‘युवराज’ और ‘ब्लेक एंड व्हाइट’ फिल्मों में ‘ सहायक निर्देशक बनीं । पुणे के भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान से लेखन और निर्देशन में पहला स्थान हासिल करने वाली शिल्पी ने चर्चित धारावाहिक सी.आई.डी. की पटकथा भी लिखी है। शिल्पी भोपाल के रंगमंच पर अभिनय करने वाली पहली पीढ़ी की कलाकार पापिया दासगुप्ता की सुपुत्री हैं।

समकालीन सिने जगत में सार्थक फिल्मों के लिए चर्चित लीना यादव का जन्म 6 जनवरी 1971 को इंदौर में हुआ। उन्होंने बतौर फिल्म एडिटर अपना करियर शुरू किया और आगे चलकर  “शब्द”, “तीन पत्ती” और “पार्च्ड” जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।  “पार्च्ड” को टोरंटो फिल्म फ़ेस्टिवल में काफी सराहना मिली। हालाँकि उनकी पहली फिल्म थी  ‘डेड एंड’, जो वर्ष 2000 में बनकर तैयार हुई। यह एक टेलीफिल्म थी जिसकी निर्माता, निर्देशक, लेखिका और एडिटर खुद लीना ही थीं। यह फिल्म भी काफी सराही गई।

परदे के पीछे विशेष योगदान देने वालों में प्रख्यात साहित्यकार दंपति पद्मश्री रमेशचंद्र शाह और ज्योत्सना मिलन की बेटी राजुला का भी है, जिन्होंने ‘दो हफ्ते गुजरते दो हफ्ते नहीं लगते’ नामक वृत्तचित्र से शुरूआत की।  उनकी ‘बियॉण्ड द व्हील’ फिल्म तीन कुम्हार महिलाओं पर आधारित है। कुम्हार समाज में महिलाओं का चाक पर बैठना अच्छा नहीं माना जाता। राजुला ने इस फिल्म में इस मान्यता को तोड़ने की कोशिश की है। इस फिल्म को केरल के फिल्मोत्सव में  सर्वश्रेष्ठ फिल्म होने का सम्मान मिला, तो तिरुअनंतपुरम के साईन फिल्मोत्सव में स्पेशल ज्यूरी पुरस्कार। प्रदेश के मालवा क्षेत्र में घर-घर कबीर गायन की परंपरा को राजुला ने ‘सबद निरंतर’ फिल्म में बखूबी दिखाया है। इस फिल्म को म्यूनिख के डॉक फेस्ट में होरिजॉन्टे पुरस्कार से नवाजा गया। राजुला इन दिनों भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान में निर्देशन पढ़ा रही हैं।

भोपाल की फिल्म निर्माता शर्ली अब्राहम इस साल ऑस्कर ज्यूरी के लिए चयनित हुई हैं। वे डॉक्यूमेंट्रीज सेगमेंट की फिल्मों की सिलेक्शन ज्यूरी में रहेंगी।वे द सिनेमा ट्रैवलर्स, सर्चिंग फॉर सरस्वती, द आर ऑफ लिंचिंग फिल्मों के लिए सम्मानित हो चुकी हैं। नेटफ्लिक्स की  फिल्म सीरियस मैन फैंस  में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी का किरदार निभाने वाली इंदिरा तिवारी अपने अभिनय को लेकर काफी चर्चित रहीं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी इंदिरा भी भोपाल से ताल्लुक रखती हैं और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की छात्रा रही हैं। साल 2008 में उन्हें उस दौर की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल से नेशनल बाल श्री सम्मान मिला था.

बहुएं भी कुछ कम नहीं

मशहूर क्रिकेटर और भोपाल के पूर्व नवाब मंसूर अली खान पटौदी का निकाह 27 दिसम्बर 1969 को बॉलीवुड की बंगाली अदाकारा शर्मिला टैगोर के साथ हुआ। निकाह के वक्त शर्मिला टैगोर ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया और उनका नाम बेगम आयशा सुल्तान रखा गया। लेकिन वे आज भी शर्मिला टैगोर के नाम से ही जानी जाती हैं। उल्लेखनीय है कि शर्मिला टैगोर कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रपौत्री हैं। इसी तरह गीतकार एवं फिल्मों के संवाद लेखक जावेद अख्तर के साथ बॉलीवुड की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता शबाना आजमी का निकाह 9 दिसम्बर,1984 को हुआ। हालांकि शबाना जावेद साहब की दूसरी पत्नी हैं। जावेद अख्तर की पहली पत्नी बॉलीवुड की प्रसिद्ध संवाद लेखक हनी ईरानी हैं। मायानगरी में दोनों अख्तर-आजमी परिवार के नाम से जाने जाते हैं। इसी तरह खंडवा में जन्मे  किशोर कुमार की पत्नियां मधुबाला, योगता बाली और लीना चंदावरकर को भी मध्यप्रदेश की बहू माना जा सकता हैं।

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित टेलीविजन, मंच एवं हिन्दी -मराठी फिल्मों की सुप्रसिद्ध चरित्र अभिनेत्री पल्लवी जोशी संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित और साहित्यकार स्व. प्रभुदयाल अग्निहोत्री की पुत्रवधु हैं। पल्लवी जोशी का विवाह स्व. अग्निहोत्री के सुपुत्र और निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के साथ हुआ है। निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल की फिल्म ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’ में पल्लवी द्वारा निभाई गई कस्तूर बा की भूमिका को दर्शकों ने काफी सराहा। अपने प्रभावी अभिनय और प्रस्तुतियों के कारण पल्लवी छोटे परदे की रानी के नाम से जानी जाती हैं। वे लोकप्रिय ‘अंताक्षरी’ कार्यक्रम में अन्नू कपूर के साथ सह प्रस्तोता थीं, तो दूरदर्शन पर प्रसारित ‘एक कहानी’ धारावाहिक के अनेक अंकों में उनकी मुख्य भूमिका थी, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया था।

गाडरवाड़ा (नरसिंहपुर) की बहू रेणुका शहाणे बॉलीवुड अभिनेता और नाटककार आशुतोष राणा की पत्नी हैं। आशुतोष जयसिंह नीखरा हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में आशुतोष राणा के नाम से जाने जाते हैं। मराठी बाला रेणुका टेलीविजन और हिन्दी-मराठी फिल्मों में चरित्र अभिनेत्री के रूप में प्रसिद्ध हैं। दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक ‘सुरभि’ में वे सिद्धार्थ काक के साथ सह प्रस्तोता थीं। उन्होंने एक दर्जन से अधिक धारावाहिकों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। फिल्म ‘हम आपके है कौन’ ने उन्हें एक नई पहचान दी। ‘दिल ने जिसे अपना कहा’,  ‘एक अलग मौसम’,  ‘तुम जियो हजारों साल’ ‘टुन्नु की टीना’, ‘मासूम’ और ‘मनी-मनी’ जैसी अनेक फिल्मों में उन्होंने काम किया।

इन तारिकाओं का भी रहा प्रदेश से नाता  

हिन्दी फिल्मों में कभी कुटिल सास, कभी ममतामयी माँ तो कभी दयालु मकान मालकिन की प्रभावी भूमिकाएं निभाने वाली ललिता पवार को कैसे भूला जा सकता है। इंदौर में बचपन गुजरने वाली  ललिता पवार का फिल्मी सफर सात दशकों तक चला। अपने कैरियर की शुरुआत ‘राजा हरीशचंद्र’ (1928) और ‘सुभद्रा हरण’ (1929) जैसी धार्मिक फिल्मों की बाल कलाकार के रुप में करने वाली मराठी भाषी ललिता जी ने चालीस के दशक में ‘कैप्टन किशोर’, ‘नारी’, ‘राम शास्त्री’ जैसी कई फिल्मों में नायिका की भूमिका निभाई। उनकी सबसे ज़्यादा चर्चित भूमिका टीवी धारावाहिक रामायण में मंथरा की थी।

इसी तरह मशहूर चरित्र अभिनेत्री तथा अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर की पढ़ाई जबलपुर में हुई है। जबकि सेलिना जेटली और पूजा बत्रा की परवरिश महू शहर में हुई है। सेलिना दावा करती हैं, कि महू उनका दूसरा घर है। 60 और 70 के दशक की अभिनेत्री एवं प्रसिद्ध पार्श्व गायिका सुधा मल्होत्रा का बचपन भोपाल में गुजरा है। उन्होंने ‘आरज़ू’, ‘धूल का फूल’, ‘काला पानी’, ‘देख कबीरा रोया’ जैसी चर्चित फिल्मों में अपनी आवाज़ दी है। उनका आखिरी गीत राज कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘प्रेम रोग’ का ‘ये प्यार था या कुछ ओर था’ काफी चर्चित रहा। उनका सबसे बढ़िया गीत ‘तुम मुझे भूल भी जाओ ये हक है तुमको’ (दीदी) है।

छोटे परदे पर बड़ी उपस्थिति

बड़े परदे की तुलना में छोटे परदे पर प्रदेश की महिलाओं का योगदान कहीं ज्यादा है। यूं तो फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में इंदौर- भोपाल के कलाकारों की संख्या ज्यादा है। लेकिन महिला अभिनेत्रियों के मामले में उज्जैन भी पीछे नहीं है।  छोटे परदे पर उपस्थिति दर्ज करवाने वाली प्रदेश की संभवतः पहली महिला नवनी परिहार उज्जैन की मूल निवासी हैं।  नवनी ने प्रख्यात लेखक बिमल मित्र के उपन्यास पर आधारित दूरदर्शन धारावाहिक ‘मुजरिम हाजिर’ में सशक्त अभिनय किया था। उज्जैन के ही सेंट मेरी कॉन्वेंट में पढ़ी 3 नवंबर 1979 को जन्मी सौम्या टंडन की शुरुआत टीवी कार्यक्रम ‘ज़ोर का झटका’ में शाहरुख की होस्ट थीं। उनका ‘डांस इंडिया डांस’ भी लोकप्रिय हुआ। सौम्या ने इम्तियाज़ अली की ‘जब वी मेट’ (2007) में करीना की बहन का किरदार भी निभाया था। लेकिन उनकी असल पहचान ‘भाभी जी घर पर हैं’ सीरियल की गोरी मेम के रूप में बनी। इस सीरियल में उनकी टाइमिंग देखते ही बनती है। इसी सीरियल की अंगूरी भाभी यानि शुभांगी अत्रे भी मध्यप्रदेश की ही हैं। भाभी जी के बौड़म, बुद्धू और मासूम किरदार को उन्होंने अपनी सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति से जीवंत करते हुए दर्शकों के दिलों में अपना विशेष स्थान बना लिया है।

प्रसंगवश उज्जैन में जन्मी देवेन्द्र और हेमलता परमार की बेटी जूही परमार का ज़िक्र लाज़मी होगा। जूही वर्ष 2008 में मनोरंजन व्यवसाय से जुड़ी। छोटे परदे पर पहली बार वे अपने प्रेमी सचिन श्रॉफ़ के साथ ‘आजा माही वे’ में दर्शकों के सामने उपस्थित हुईं। इसके बाद जूही और सचिन ने विवाह कर लिया।  एनडीटीवी इमेजिन पर प्रस्तुत नृत्य श्रृंखला ‘जो जीता वही सुपर स्टार’ तथा ‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम’ की वह प्रस्तोता रही हैं।  स्टार प्लस पर प्रसारित ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’, ‘कुसुम’, ‘कहो न यार है’, ‘खुल जा सिम-सिम’,  ‘किसमें कितना है दम’, ‘कुछ कर दिखाना है’ जैसी टीवी श्रृंखला में जहां उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं अपने पति सचिन श्रॉफ़ के साथ ‘राखी का स्वयंवर’ और ‘स्टार विवाह’ में भी उन्होंने दर्शकों का मनोरंजन किया।  ‘स्टार वॉयस ऑफ इण्डिया’ में वे शान के साथ और ‘अंताक्षरी’ में अन्नू कपूर के साथ सह प्रस्तोता बनीं। उन्होंने बिग बॉस के पांचवें एडिशन में खिताब जीतकर एक करोड़ रुपए की ईनामी रकम प्राप्त की। टीवी धारावाहिकों के अलावा जूही ने हिन्दी फिल्मों में भी काम किया है। वर्ष 2005 में उन्होंने रवीना टंडन की फिल्म ‘पहचान’ में चरित्र भूमिका निभाईं । मनोरंजन की दुनिया में प्रवेश से पहले वे वर्ष 1999 में मिस राजस्थान का खिताब जीत चुकी थीं।

वर्ष 2007 की मिस मध्यप्रदेश और स्टार परिवार अवार्ड से नवाज़ी गईं मॉडल और अभिनेत्री सारा खान के धारावाहिकों में ‘विदाई’, ‘सपना बाबुल का’ और रियलिटी शो बिग बॉस-4 प्रमुख हैं। ‘न आना इस देश लाडो’ धारावाहिक में प्रमुख भूमिका निभाने वाली शिवांगी शर्मा,  प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की बेटी अभिनेत्री और निर्माता नेहा शरद, निर्माता पल्लवी जोशी की हास्य धारावाहिक ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ से पहचान बनाने वाली  शालिनी खन्ना , निर्माता एकता कपूर की धारावाहिक महाभारत से टेलीविजन की दुनिया में कदम रखने वाली खुशबू जैन, सारेगमप लिटिल चैम्प वैशाली रायकवार, ‘अता पता लापता’ की ज्योति, ऐश्वर्या खरे, नीलम भारद्वाज, सीमा सैनी  जैसी अनेक अदाकाराओं ने मध्यप्रदेश का परचम लहराया है।

‘ये हैं मोहब्बतें’ से दिव्यंका त्रिपाठी ने भी अपनी पहचान बनाई है। 14 दिसंबर 1984 को भोपाल में जन्मी दिव्यंका त्रिपाठी ने ‘बनूँ मैं तेरी दुल्हन’ में दोहरी भूमिका निभाते हुए छोटे परदे पर अपनी विशेष छाप छोड़ी है। वे 2005 में मिस भोपाल भी रह चुकी हैं।  उन्होंने ज़ी सिने स्टार की खोज में विजेता बनकर टेलीविजन की दुनिया में कदम रखा और धारावाहिक ‘बनूँ मैं तेरी दुल्हन से’ वे मशहूर हो गईं।  ‘मिस्टर एंड मिसेस शर्मा इलाहाबाद वाले’ ‘श्श.. फिर कोई है’  व ‘एक बड़ी सी लव स्टोरी’ उनके प्रमुख धारावाहिक हैं। उन्होंने ‘ये है मोहब्बतें’ (2017) में डॉ. ईशिता खन्ना का लोकप्रिय किरदार भी निभाया था। वे डांस रियलिटी शो ‘नच बलिये’ की विजेता भी रह चुकी हैं।

हाल ही में सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत के बाद मीडिया में अचानक अंकिता लोखंडे का नाम भी खूब चर्चा में आया । इंदौर में 1984 में जन्मी अंकिता की सुशांत के साथ ‘पवित्र रिश्ता’ में जोड़ी खूब जमी थी। छोटे परदे से सन्यास लेने के समय वे सबसे ज्यादा पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्रियों में थीं। उन्होंने ‘मणिकर्णिका’ (2019) और ‘बागी-3’ (2020) जैसी फिल्मों में भी भूमिकाएं निभाई हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सिनेमा के बड़े परदे के साथ-साथ छोटे परदे को भी मध्य प्रदेश की आधी आबादी ने अमूल्य योगदान दिया है। हालांकि सिनेमा में व्याप्त भाई भतीजावाद और आपसी राजनीति के चलते मध्यप्रदेश की युवतियों को उनकी प्रतिभा के मुताबिक पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते हैं, लेकिन इससे उनके योगदान को कम नहीं किया जा सकता। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में हमें प्रदेश का प्रतिनिधित्व और भी देखने को मिलेगा।

(इनपुट आज तक, दैनिक भास्कर तथा विकिपीडिया से भी) 

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