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विधि=विमर्श
पुरुष प्रधान समाज में घर के भीतर महिलाओं का प्रताड़ित होना आम सी बात है । ऐसी घटनाएँ बड़ी मुश्किल से बाहर आ पातीं हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम – 2005 पारित किया गया। इसमें घरेलू हिंसा को परिभाषित करने एवं उसके प्रतिकार के लिए कई धाराओं को समाहित किया गया है।महिला एवं बाल विकास द्वारा संचालित यह अधिनियम 14 सितम्बर 2005 से प्रभावी हुआ है। शहरी क्षेत्रों में विभाग द्वारा संरक्षण अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनते हैं एवं प्रकरण की जांच के बाद न्यायालय भेज देते हैं। इसके अंतर्गत पीड़ित महिला को सहायता के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता भी मिल सकती है। गंभीर शोषण सिद्ध होने पर अपराधी को तीन साल का कठोर कारावास या जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
घरेलू हिंसा पर नियंत्रण हेतु मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कई उपाय किए गए हैं जिनमें प्रमुख हैं –
उषा किरण योजना
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 को लागू करते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2008 में उषा किरण योजना लागू की। महिला के उसके परिवार में घरेलू हिंसा से पीड़ित होने पर इस कानून के तहत सहायता उपलब्ध कराने के लिए बाल विकास परियोजना अधिकारियों को उनके क्षेत्र के लिए संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों के अधीन सेवाएं विशेष रूप से परामर्श सेवाएं देने के लिए सभी जिलों में संचालित पुलिस परामर्श केंद्रों एवं आश्रय सेवाएं देने के लिए संस्थाओं को सेवा प्रदाता के रूप में पंजीकृत किया गया है।
इस योजना के तहत पीड़ित महिला को संरक्षण, चिकित्सा सुविधा, विधिक सुविधा एवं अन्य ज़रूरी सहायता निःशुल्क उपलब्ध करवाई जाती है। तत्काल इलाज के साथ पीड़ित की काउंसलिंग भी करवाई जाती है। जिला परियोजना अधिकारियों की ज़िम्मेदारी तय की गई है कि वह पीड़ित की शिकायत तत्काल जिला मजिस्ट्रेट के पास दर्ज करवाए। वर्ष 2015 में इस योजना में दुष्कर्म पीड़ितों के लिए कुछ महत्वपूर्ण संशोधन राज्य सरकार द्वारा किए गए. इसके तहत पीड़ित के पुनर्वास के लिए जॉब गारंटी या उसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के प्रावधान शामिल किए गए हैं। पीड़िता यदि नाबालिग है तो उसकी शिक्षा और दीर्घकालिक पुनर्वास के लिए के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था भी राज्य सरकार समुचित प्रबंध करेगी।
केंद्र सरकार द्वारा संचालित वन स्टॉप सेंटर योजना सभी प्रकार की हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बालिकाओं को एक ही स्थान पर अस्थायी आश्रय, पुलिस डेस्क, चिकित्सा सहायता, विधिक सहायता उषा किरण केन्द्रों पर उपलब्ध करवाई जाती है।
परिवार परामर्श केन्द्र
पारिवारिक विवादों को आपसी परामर्श देकर सुलझाने हेतु प्रदेश में कई परिवार परामर्श केंद्र संचालित हैं। यदि एक बार महिला की शिकायत पर अपराध पंजीबद्ध हो जाता है तो उसमें समझौते की संभावना लगभग नहीं के बराबर रह जाती है, ऐसे प्रकरणों के निराकरण की दिशा में परिवार परामर्श केंद्र सशक्त भूमिका निभा रहे हैं।
महिला हेल्पलाइन
किसी कारण से यदि कोई महिला परिवार परामर्श केंद्र या पुलिस थाने तक पहुंचने में असमर्थ है तो वह अपनी व्यथा फोन के माध्यम से महिला हेल्पलाइन को बता सकती है। हेल्पलाइन पर प्रशिक्षित काउसंलर 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं, जो महिला की व्यथा सुनकर उसके निराकरण का समुचित प्रयास करते एवं आवश्यक मार्गदर्शन देते हैं। मध्यप्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने हेल्पलाइन शुरू की है। चूंकि विभाग के पास प्रताडि़त करने वाले के विरूद्ध कार्रवाई का अधिकार नहीं है, इसलिए हेल्पलाइन शुरू करने का जिम्मा पुलिस विभाग को सौंपा गया है। हेल्पलाइन में 1091 नंबर पर कॉल करने पर कोई शुल्क नहीं लगता है।
हेल्पलाइन नंबर को और भी प्रभावी बनाने के लिए उसे वन स्टॉप सेंटर से भी जोड़ दिया गया है। केंद्र सरकार की सहायता से मप्र शासन महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्रालय राज्य द्वारा संचालित वन स्टॉप सेंटर(सखी) योजना के तहत सभी प्रकार की हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बालिकाओं को एक ही स्थान पर अस्थायी आश्रय, पुलिस डेस्क, चिकित्सा सहायता, विधिक सहायता उषा किरण केन्द्रों पर उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अलावा अलग-अलग जगहों पर भी कई सेंटर खोले गए हैं ताकि पीड़ित महिलाओं को सभी प्रकार की सरकारी सुविधा तत्काल उपलब्ध करवाई जा सके। उदाहरण के लिए – यहाँ वह एफ़आईआर तक दर्ज कर सकती हैं। इसके अलावा मदद के लिए इस सेंटर द्वारा हेल्पलाइन नंबर भी जारी किये गए हैं जैसे – 1090, 181 एवं 108 । यहाँ कॉल कर महिलाएं किसी भी दिन, किसी भी समय मदद प्राप्त कर सकती हैं। दरअसल, वर्ष 2017 में राज्य सरकार ने सी एम हेल्पलाइन(181), एम्बुलेंस सर्विस 108, और 1090 को आपस में जोड़ दिया था।
महिला प्रकोष्ठ
मध्यप्रदेश में पुलिस मुख्यालय स्तर पर महिलाओं के साथ घटित अपराधों की मॉनिटरिंग के लिए 1981 में महिला प्रकोष्ठ की स्थापना की गई। महिलाएं अपनी शिकायत सीधे इस प्रकोष्ठ में भी कर सकती हैं।
महिला थाना
मध्यप्रदेश के भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर सहित 9 जिलों में महिला थाना कार्यरत है। इसमें महिलाओं को शिकायत करने एवं एफ़आईआर कराने में सहजता होती है। पहला महिला थाना भोपाल में स्थापित हुआ था। मार्च 2017 तक प्रदेश में कुल महिला थानों की संख्या थी 10. इसी माह प्रदेश के तत्कालीन गृह मंत्री बाबूलाल गौर ने यह ऐलान किया था कि प्रदेश के सभी महिला थानों को बंद कर दिया जाएगा क्योंकि जिन उद्देश्यों को लेकर उन्हें प्रारंभ किया गया था वह असफल रहा। इनकी उपयोगता से ज्यादा इन पर खर्चे हैं. इसकी जगह हर थाने में महिला डेस्क बनाने की घोषणा की गई जिसमें दो महिला पुलिसकर्मियों को नियुक्त किये जाने की बात कही गयी। परन्तु इस घोषणा के कुछ घंटों के बाद ही सरकार ने यह फैसला वापस ले लिया और हर जिले में महिला थाना स्थापित करने की बात कही गयी साथ ही हर थाने में महिला डेस्क शुरू करने पर भी जोर दिया गया उल्लेखनीय है कि प्रदेश के पुलिस विभाग में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्राप्त है।
महिला डेस्क
महिलाओं के साथ घटित हो रहे अपराधों की रिपोर्ट कोई पीड़ित महिला बगैर किसी संकोच के महिला पुलिस कर्मचारी के समक्ष कर सके, इस उदेश्य से महिला डेस्क की स्थापना प्रदेश के 38 जिलों के 38 थानों में की जा चुकी है। 141 पुलिस थानों पर महिला डेस्क की स्थापना करने के लिए प्रस्ताव मध्यप्रदेश शासन को भेजा गया था, जिसके प्रथम चरण में प्रदेश के 47 जिलों के 47 थानों में महिला डेस्क खोले जाने की स्वीकृति प्राप्त हुई है। 38 के अलावा अन्य स्वीकृत जिलों में महिला डेस्क खोले जाने की कार्रवाई की जा रही है।
पीड़ित महिलाओं के लिए संस्थाएं
मध्यप्रदेश में महिला उद्धार गृह, नारी निकेतन, अल्प आवास गृह, नारी निकेतन, निराश्रित महिला गृह और मंदबुद्धि एवं कमजोर के लिए गृह जैसी संस्थाएं संचालित की जा रही हैं, जो किसी न किसी रूप में कानूनी मदद की राह देख रहीं महिलाओं के हित में हैं।
संपादन – मीडियाटिक डेस्क
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