• सीमा चौबे
यूं तो सोशल मीडिया पर रील्स बनाकर वाहवाही बटोरने वालों की कमी नहीं है, लेकिन इस भीड़ में 'पुष्पा जिज्जी' अपने अनूठेपन से सबका ध्यान खींचती है। उनके वीडियोज़ में जो ख़ास बात नज़र आती है, वह है बुंदेली का इस्तेमाल और अपना अलग अंदाज़। हँसी-हँसी में गंभीर बात कह जाने वाली पुष्पा जिज्जी एक प्रतिभाशाली लेखक और कलाकार हैं। ये पुष्पा जिज्जी और कोई नहीं, डबरा की रहने वाली चेष्टा सक्सेना हैं जिनका जन्म वर्ष 1979 में ग्वालियर में हुआ। डॉ. स्वतंत्र कुमार सक्सेना और सुषमा सक्सेना की दो संतानों में बड़ी चेष्टा में घर के माहौल से सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक चेतना जागी। डबरा से बारहवीं तक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने केआरजी कॉलेज से ग्रेजुएशन और दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडल के साथ एम.ए. किया। इसके अलावा उन्होंने जीवाजी यूनिवर्सिटी से एमएसडब्ल्यू तथा बी.एड. की डिग्री भी हासिल की है।
शुरुआत में जब शौकिया तौर पर छोटे-छोटे वीडियो बनाकर राजनीति और समसामयिक विषयों पर चेष्टा ने चुटकी लेना शुरू किया, तब सोचा नहीं था कि एक दिन वो घर-घर में पहचानी जायेंगी। सहज, सरल सी गृहणी चेष्टा अपनी छोटी बहन निष्ठा (पद्मा) के साथ मिलकर गंभीर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक शैली में टिप्पणी करतीं हैं। उनके वीडियो समाज और राजनीति की विसंगतियों के बारे में लोगों को आगाह करने वाले होते हैं। महिमा मंडन के नाम पर टांग खिंचाई करने वाली चेष्टा की वाकपटुता कमाल की है। राजनीति के अलावा वे महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर भी बात करती हैं।
जिस दौर में महिलाएं घर की चौखट से ही कभी-कभार बाहर निकला करती थीं, उनकी दादी सावित्री देवी सक्सेना राजनीति में सक्रिय थीं। घर पर आये दिन नेताओं का जमघट लगा रहता और देश-समाज से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा होती। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गईं। उन्हें इंदिरा गांधी द्वारा सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं, डॉ. लोहिया जी के आह्वान पर सावित्री जी दतिया से महिलाओं का जत्था लेकर लखनऊ गईं थीं। लोहिया जी को जब इस बात का पता चला तो उनका स्वागत करने वे खुद उन्नाव पहुँच गए थे। बड़े होते-होते तक चेष्टा को यह बात भली-भांति समझ आने लगी कि अगर आवाज़ उठाओ तो बात जन-जन तक पहुँचती है।
एक तरफ दादी से प्रभावित होकर चेष्टा में राजनीतिक चेतना जागृत हो रही थी तो दूसरी और माता-पिता और मामा से साहित्यिक अभिरुचि विरसे में मिल रही थी। इतना ही नहीं, पेशे से डॉक्टर उनके पिता समाज सेवा से भी जुड़े रहे और उन्होंने अंधविश्वास के ख़िलाफ़ काफ़ी काम किया। उन्होंने डबरा के युवाओं को जोड़कर ‘विज्ञान जत्था जन विज्ञान समिति’ नाम से एक टीम बनाई जिसके माध्यम से वे जन जागरूकता के लिए स्कूल-कॉलेजों और चौक-चौराहों पर नुक्कड़ नाटक किया करते थे। जब चेष्टा और उनकी छोटी बहन कुछ बड़ी हुई तो वे भी अपने पिता के साथ नुक्कड़ नाटकों में हिस्सा लेने लगीं। यही कारण रहा कि दोनों बहनें किसी भी तरह के अंधविश्वास से कोसों दूर हैं। डॉ. सक्सेना जनवादी लेखक संघ से भी जुड़े थे, घर में अक्सर कवि गोष्ठियां और शेरो-शायरी की महफिलें हुआ करती थीं। चेष्टा भी बड़े ध्यान से कवियों को सुना करतीं। कुछ चीज़ें उनकी समझ में आतीं, कुछ नहीं। लेकिन जिज्ञासु इतनी कि न समझ आने वाली चीजों को पूछकर ही वे दम लेतीं। इसी जूनून में ग़ालिब को समझने के लिए उन्होंने उर्दू सीख ली।
चेष्टा बताती हैं उनकी माँ का हास्य बोध (सेन्स ऑफ़ ह्यूमर) बहुत अच्छा था। वे और उनके भाई हमेशा व्यंग्यात्मक लहजे में बात किया करते थे। इस तरह जिन चीज़ों को (राजनीति, साहित्य, समाजसेवा) उन्होंने अपने आसपास देखा, सुना और महसूस किया, वही सब चेष्टा के स्वभाव में भी आ गया। अपनी माँ की तरह व्यंग्य में बात करना उनकी आदत में शुमार है।
शिक्षा पूरी होते ही चेष्टा ने वर्ष 2005 से 2007 तक मुरैना अस्पताल और ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में बतौर एड्स काउंसलर काम किया। इसी दौरान उनका विवाह हो गया। चेष्टा के विवाह से जुड़ी घटना भी कम रोचक नहीं है। जवाहलाल नेहरु विवि से पीएचडी कर रहे विपिन कुमार शर्मा की हंस पत्रिका में प्रकाशित एक कहानी उन्होंने पढ़ी। उनकी लेखन शैली ने चेष्टा को इतना प्रभावित किया कि पत्रिका में लिखे पते पर उन्होंने विपिन जी को एक पत्र लिख भेजा। विपिन जी ने भी उस खत का जवाब सहजता से दिया। धीरे-धीरे पत्राचार बढ़ा फिर फोन पर अक्सर बातें होने लगीं। पांच- छह माह चली बातचीत के बाद ही एक दिन विपिन जी ने उनके सामने विवाह प्रस्ताव रख दिया। दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद मई 2007 में दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। शादी के बाद चेष्टा अपने ससुराल पटना आ गईं। वर्ष 2008 में बड़ी बेटी अरन्या और वर्ष 2011 में दूसरी बेटी वन्या का जन्म हुआ। पीएचडी पूरी होते ही विपिन जी काम के सिलसिले में मुंबई चले गए। चेष्टा का कभी पटना, तो कभी डबरा आना जाना लगा रहा।
चेष्टा काफ़ी पहले से फ़ेसबुक पर राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर लिखती रही हैं। वहीं से उन्हें वीडियो बनाने का ख्याल आया, अभिनय का शौक तो उन्हें बचपन से था ही, इस तरह उन्होंने वर्ष 2015 से लेखन को वीडियो की शक्ल देना शुरू किया जिससे उनके अभिनय करने की हसरत भी पूरी हो गई। दोस्तों और रिश्तेदारों से तारीफ़ और प्रोत्साहन मिलने के बाद उन्होंने छोटे-छोटे वीडियो फ़ेसबुक पर डालना शुरू किया। लोगों को वे काफी पसंद आए और इस तरह ये सिलसिला चल निकला। चेष्टा और उनकी बहन निष्ठा बचपन से ही इकट्ठे डांस और नाटक करती रही हैं, दोनों की सोच भी समान है, इसलिए दोनों ने साथ मिलकर ही काम करना तय किया। अभी तक बनाए वीडियोज़ में केवल 50 ही ऐसे हैं जिसमें चेष्टा अकेली नजर आती हैं। इस बारे में चेष्टा कहती हैं "मैं निष्ठा के बिना वीडियो बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकती। लोग भी हम दोनों को साथ में ही देखना पसंद करते हैं, निष्ठा को भी बतौर पद्मा जिज्जी बहुत पहचान मिली है। जब भी मैं वीडियो में अकेली नज़र आती हूँ तो लोग कमेंट में जरूर पूछते हैं कि छोटी जिज्जी कहाँ हैं?”
वीडियो में चेष्टा और निष्ठा एकदम घरेलू महिलाओं की तरह दिखती हैं और अपने निराले अंदाज़ में कभी बहनें, पड़ोसन, सास-बहू तो कभी देवरानी-जेठानी के किरदार में एक दूसरे से बतियाती हैं। इस बारे में चेष्टा कहती हैं “हम ऐसी छवि गढ़ना चाहते थे, जिससे आम औरतें हमारे साथ सीधा जुड़ाव महसूस कर सकें। दूसरा, क्षेत्रीय बोली लोगों से जुड़ने का एक शक्तिशाली माध्यम है, इसीलिए बुंदेली भाषा और आम महिलाओं की तरह साधारण पहनावे पर हमने जोर दिया। किरदार के लिये हमें एक सामान्य नाम लेना था जिससे लोगों को दीदी, भाभी, चाची, मामी का अहसास हो, लगे कि हमारे आसपास की ही कोई जिज्जी हैं, जो हमसे हमारी भाषा में बात कर रही हैं, इसलिए हमने पुष्पा जिज्जी नाम का चुनाव किया।
यूं तो उनके बनाये कई सारे वीडियो काफ़ी चर्चित रहे हैं जैसे मन की बात, चाय पर चर्चा, टीवी डिबेट में बुलावा, मोहल्ला में कोरोना कैसे आया, अच्छे दिन आ गए, क्या डिग्री-डिग्री लगा रखा है, लेकिन फेसबुक पर उनकी सबसे पहली लोकप्रिय हुई पोस्ट के बारे में चेष्टा बताती हैं “एक दिन हम घर में पोहा खा रहे थे तभी टीवी पर बांग्लादेश घुसपैठियों के बारे में एक नेताजी का अजीबो-ग़रीब बयान आया, जिसमें वे कह रहे हैं कि “अपने घर पर काम कर रहे कुछ मजदूरों के पोहा खाने के तरीके से वे (नेताजी) समझ गए कि वे (मज़दूर) बांग्लादेशी हैं।” उनका यह बयान दिमाग में चल ही रहा था हमने तुरंत मोबाइल उठाया और वीडियो बना दिया जिसमें हम कह रहे हैं “आज हम भोत विवादित नाश्ता कर रये। पोहा खा रये। वैसे खात तो हम रोजइ हैं। काये से के हमाओ ना बचपन से फेवरेट है पोहा। भोत अच्छो लगत है, सो हम रोजइया खात हैं। पर सर्दियन में न बाहेरे धूप में बैठ के खात हैं, लेकिन आज हमने कई - ना भैया, बाहेरे नई बैठने, दुबके खाबे में ही भलाई है। काए से कि नेताजी ने देख लओ तो बे न जाने हमें का के देवें। जब छे-सात जने एक थाली में पोहा खा रये थे, तब वे समझ गये कि वे घुसपेठिया हैं और हम तो अकेले कटोरा भर के खा रये। हमे तो वे सीधे सीधे आतंकवादी के दे हैं। हमने कई - ना भैया, ऐसी रिस्क ना लेने हमें। बिनकी नजर हम पे पड़ गई, तो मर जे हैं हम तो। बता ना दियो किसी को हमाई तो फजीहत हो जे है।” ये इतना पॉपुलर हुआ कि इसे लेकर कई दिनों तक फ़ोन और मैसेज आते रहे।
ऐसा नहीं है कि उनके वीडियोज़ पर हमेशा वाहवाही ही मिलती हैं, उनके इस काम पर उन्हें जमकर तालियाँ मिलती हैं तो गालियाँ भी कम नहीं मिलती। कमेंट्स में कई लोग बहुत निचले स्तर की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि स्क्रिप्ट लिखते समय वे इस बात का विशेष ध्यान रखती हैं कि कोई भी संदेश समाज को भड़काने वाला, विवाद खड़ा करने वाला न हो। चेष्टा कहती हैं “दरअसल लोगों ने पढ़ना-समझना छोड़ दिया है, इसीलिए वे व्यंग्य और आलोचना में फ़र्क करना भूल गए हैं। उनके समझने के दायरे भी सीमित हो गए हैं, लेकिन अब इसकी आदत हो गई है। पहले किसी के कुछ कहने भर से तनाव हो जाता था, पर अब समझ आने लगा कि कोई भी काम करो एक वर्ग आपका विरोध करेगा ही।”
पुष्पा जिज्जी और चेष्टा में काफ़ी समानताएं भी हैं इसलिए वे इस किरदार को सहजता से कर पाती हैं। जागरूकता वही है, जो पुष्पा जीजी में है। सब कुछ जानने-समझने की जिज्ञासा हमेशा बनी रहती है और गलत बात पर अपना विरोध भी दर्ज करवाती हैं। उन पर एक खास विचारधारा की होने के आरोप भी लगते रहे हैं। इस पर उनका कहना है हम देश में फ़ैली विसंगतियों को लेकर जागरूकता संदेश देने का काम इसी तरह करते रहेंगे, फिर सत्ता की बागडोर चाहे किसी भी दल के हाथ में हो।
किसी मुद्दे पर मज़ाकिया लेकिन बेबाक अंदाज़ में अपनी बात कह देना आसान काम नहीं है। पुष्पा जिज्जी के अवतार में चेष्टा ने ये कर दिखाया है और इसीलिए उन्हें फिल्मों में अभिनय और कॉमेडी शोज़ के कई ऑफ़र मिले। लेकिन आजकल जैसा हास्य परोसा जा रहा है, उसमें चेष्टा खुद को फिट नहीं पातीं। लिहाजा वे इन सबसे दूर ही रहना पसंद करती हैं। कोई अच्छा अवसर मिला तो उन्हें ऐतराज़ नहीं होगा। फिलहाल उनका पूरा फोकस केवल संदेशपरक वीडियो बनाने पर ही है। यही वजह है कि कभी कमाल की शेरो-शायरी करने वाली चेष्टा को इस काम के लिए समय नहीं मिल पाता, लेकिन बीच-बीच में वे शेरो-शायरी की रील्स जरूर बना लेती हैं ।
किसी भी विषय की गहराई को समझ कर उसे मज़ाक में लोगों को समझाने की कला में माहिर चेष्टा महिलाओं - ख़ास तौर से गृहिणियों में राजनीतिक चेतना का प्रसार कर रही हैं। उनका लक्ष्य ऐसी महिलाएं हैं, जो शादी के बाद घर-गृहस्थी के चक्कर में दीन-दुनिया को भूल जाती हैं। चेष्टा कहती हैं ज़्यादातर महिलाएं राजनीति पर बात नहीं करतीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे उससे प्रभावित नहीं होतीं या उस बारे में सोचती नहीं हैं। हमारा मकसद भी यही है कि हमारी आवाज़ ऐसी ही महिलाओं तक पहुंचे। वे भी अपनी बात, अपनी परेशानी जाहिर करें, अपनी राय रखें। इसका असर भी देखने को मिल रहा है, जब एक सब्जी वाली कहती है कि आपके वीडियो देखकर हमें देश में कब क्या हुआ और क्या चल रहा है - सब पता चल जाता है। ज़रूरी नहीं कि एक आम महिला घर से बाहर निकलकर ही बात करे। घर में भी देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर बातें करे, उससे भी फ़र्क पड़ता है। अगर महिलाएं जागरूक हो जाएँ तो देश में नई क्रांति आ सकती है।
चेष्टा की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है उनके यूट्यूब चैनल 'पुष्पा जिज्जी' को सिल्वर बटन मिल चुका है। एक करोड़ से अधिक लोग इसे देख चुके हैं और यह संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इस चैनल पर साढ़े पांच सौ से भी ज़्यादा वीडियो अपलोड हैं और एक लाख से अधिक सबस्क्राइबर हैं। ख़ास बात यह है कि स्क्रिप्ट लिखने से लेकर, वीडियो बनाने और एडिटिंग करने का काम खुद चेष्टा ही करती हैं।
उनकी छोटी बहन निष्ठा उनके पड़ोस में ही रहती हैं और विपिन जी मुंबई में बतौर फ्रीलांसर काम कर रहे हैं। सातवीं और दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली उनकी दोनों बेटियां भी उनके हर वीडियो देखती हैं और समझने की कोशिश करती हैं।
सन्दर्भ स्रोत : सीमा चौबे की चेष्टा सक्सेना से हुई बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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