पति के भरण-षोषण का अधिकार
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में पति-पत्नी के रिश्तों को लेकर अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पत्नी बिना किसी उचित कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है और उसके पास पति के खिलाफ दुर्व्यवहार करने के कोई प्रमाण नहीं है, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।
केरल हाईकोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा करने के लिए पत्नी के पास वैध आधार है जैसे कि क्रूरता या परित्याग मौजूद है, तो वह अलग रहने के बावजूद भरण-पोषण का दावा कर सकती है। यह मामला उस समय सामने आया जब पत्नी ने अपने पति के खिलाफ त्रिशूर के एक फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण याचिका दायर की थी।
विवाद तलाक तक पहुंचा
इस मामले में दंपति की शादी जनवरी 2008 में हुई थी और अप्रैल 2013 में उन्हें एक बच्चा हुआ। वहीं 2015 में दोनों के बीच वैवाहिक विवाद हो गया जो कि तलाक याचिका तक पहुंच गया। फैमिली कोर्ट ने अप्रैल 2017 में दंपति को तलाक देते हुए पति को अपनी पत्नी को ₹25,000 प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
गुजारा भत्ता देने से इंकार
पति ने इस फैसले के खिलाफ केरल हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी ने 16 नवंबर 2015 को बिना किसी उचित कारण के उनके वैवाहिक घर को छोड़ दिया था, जबकि उनका बच्चा केवल दो वर्ष का था। पत्नी के वकील ने दावा किया कि वह पति के दुर्व्यवहार के कारण घर छोड़ने के लिए मजबूर हुई थी और इसलिए उसे भरण-पोषण का अधिकार है।
पति को सबक सिखाने के लिए
हालांकि, न्यायालय ने सबूतों की समीक्षा करने के बाद पाया कि पत्नी ने अपने पति के खिलाफ किसी भी प्रकार की पुलिस शिकायत दर्ज नहीं कराई थी और न ही क्रूरता का कोई अन्य प्रमाण प्रस्तुत किया था। हाईकोर्ट ने यह भी उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसा फैमिली कोर्ट ने भी पाया कि पत्नी ने अपने पति को ‘सबक सिखाने’ के इरादे से घर छोड़ा था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि विवाहित जोड़े का एक-दूसरे के साथ रहने का अधिकार जिसे ‘संयोग’ कहा जाता है, विवाह का एक मौलिक पहलू है और जब कोई भी पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के दूसरे से अलग हो जाते हैं, तो यह वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने में विफलता का संकेत है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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