छाया : विकी बायो डॉट इन
प्रमुख लेखिका
• वंदना दवे
साठ और सत्तर के दशक की नामचीन शायरा और कवियत्री कमल शबनम कपूर का मप्र से काफी गहरा और मजबूत संबंध रहा। कमल जी का जन्म जागीरदार बंगाली ब्राह्मण परिवार में 8 जून 1928 को दार्जिलिंग में हुआ। पिता श्री बंसीनाथ चटर्जी आजादी के आंदोलन में सक्रिय क्रांतिकारी थे तथा सरोद बहुत अच्छा बजाते थे। मां श्रीमती लक्ष्मी चटर्जी शास्त्रीय गायिका थीं। आजादी की क्रांति के दौरान बंसीनाथ जी को अंग्रेजों से बचते हुए भूमिगत होना पड़ता था इसलिए उन्होंने अपनी बेटियों और पत्नी को नागपुर में अपने रिश्तेदार के यहां रख दिया था। नागपुर में रहते हुए कमल जी की शुरुआती शिक्षा हुई। कुछ बरस बाद टीकमगढ़ रियासत ने बंसीनाथ चटर्जी को अपने यहां आकर रहने का आग्रह किया। टीकमगढ़ नरेश क्रांतिकारियों की बहुत इज्जत करते थे। बंसीनाथ जी अपनी तीनों बेटियों और पत्नी के साथ टीकमगढ़ में बस गए। यहीं पर कमल जी की आगे की शिक्षा हुई।
वे जब तेरह बरस की थी तभी पिताजी का देहावसान हो गया। ऐसी स्थिति में मां ने अपनी बेटी की शादी करना उचित समझा। कमल जी की बड़ी बहन के पति आर्मी में थे। उनके श्री मदन लाल कपूर से दोस्ताना ताल्लुकात थे, जो मप्र में एक पारसी नाटक कंपनी के मालिक थे। वे अपने दोस्त को और उनके परिवार को अच्छे से जानते थे इसलिए उन्होंने अपनी सास से कमल जी की शादी मदन लाल कपूर से करने का सुझाव रखा जिसे उनकी सास ने मान लिया और कमल चटर्जी का विवाह श्री मदन लाल कपूर से हो गया। इस तरह बंगाली ब्राह्मण और खत्री पंजाबी परिवार का संबंध हुआ। बहुत ही कम आयु में विवाह हो जाने के बाद भी पति मदन कपूर के सहयोग से भोपाल से ही स्कूल और महाविद्यालयीन शिक्षा जारी रखी। पति के आग्रह पर उर्दू सीखी। भोपाल विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में एमए किया। अलीगढ़ में विंध्या विनोदनी की। मां लक्ष्मी शास्त्रीय गायिका थीं इसलिए कमल जी शास्त्रीय गायन करती थीं। इनकी इस रुचि को पति मदन जी ने आगे और बढ़ाते हुए शास्त्रीय गायन किराना घराने के उस्ताद से शास्त्रीय गायन सिखवाया। कमल जी ने जावेद अख़्तर की माता जी सफ़िया आपा से भी तालीम हासिल की थी और शायरी और कविताएं लिखना शुरू किया। इन्होंने अपनी पहली नज़्म भोपाल में ही लिखी जिसका मतला है
“ उफ़क़ से निकला जो मेहरे ताबाँ तो मुर्ग़ज़ारों को होश आया”
पति श्री मदन कपूर का भरपूर सहयोग होने के बावजूद कमल जी की राह आसान नहीं थी। ससुराल बेहद कुलीन परिवार से था। आजादी के पूर्व पेशावर में सभी रहते थे। ससुर आर्मी में कर्नल थे। पति मदन लाल कपूर ने भी लाहौर युनिवर्सिटी से वेटनरी में ग्रेजुएशन किया था, लेकिन नाटकों में बहुत अधिक रूचि होने के कारण परिवार की मर्जी के खिलाफ उन्होंने हिन्दुस्तान में पारसी नाटक कंपनी खोली। इसके तहत मप्र के कस्बों में नाटक मंचन किया जाता था। इस वजह से कमल शबनम जी को अकेले ही परिवार को संभालना पड़ा। इस कंपनी से लीला मिश्रा, मुमताज अली (मेहमूद के पिता जी) शकीला बानो भोपाली जैसे लोग जुड़े थे जो आगे जाकर नामचीन सितारा बने। विवाह के बाद परिवार का विस्तार हो रहा था तो मदन जी ने परिवार को भोपाल के इतवारा में एक मकान लेकर रखा ताकि बच्चों की पढ़ाई हो सके। यहां कमल जी अपने बड़े पुत्र रणजीत कपूर, दूसरे पुत्र अन्नू कपूर और पुत्री सीमा कपूर के साथ रहने लगी। बच्चों की पढ़ाई यहीं के स्कूल से हो रही थी। कमल जी को साहित्यिक किताबें और मैग्जीन पढ़ने का बेहद शौक था। यही कारण रहा कि इनके बच्चों में भी यही आदत बनी और ये लोग भी देश के लब्धप्रतिष्ठित कलाकार हैं और फिल्म में बेहतरीन लेखन कर रहे हैं।
कंपनी के डेरे सिहोर शिवपुरी गुना जैसे अनेक कस्बों में लगाए जाते थे। कुछ साल बाद परिवार शिवपुरी जाकर बस गया। यहां कमल जी कवि सम्मेलन और मुशायरों में जाने लगीं। धीरे-धीरे पूरे देश में इन्हें जाना जाने लगा। मेरठ, दिल्ली, फगवाड़ा, मुंबई, देहरादून आदि अनेक जगहों पर इनके अशआर और कविताएं सराही जाने लगीं। प्रतिष्ठित साहित्यकारों में शुमार होने लगीं। बताया जाता है कि पटना में मुशायरा चल रहा था। यहां कमल जी के साथ साहिर लुधियानवी भी आमंत्रित थे। कमल शबनम जी को सुनने के बाद मजलिस से आधे लोग उठकर चले गए जबकि तब तक साहिर साहब की बारी आई ही नहीं थी। तब साहिर ने कमल जी को मुशायरा लूटने वाली कहा था। ऐसे ही मुम्बई में मुशायरा होने पर मीना कुमारी कमल शबनम को ही सुनने आती थीं।
शिवपुरी के अस्पताल में कमल जी सोशल वर्कर भी थी। यहीं इनके चौथे पुत्र निखिल कपूर ने जन्म लिया। ये जब प्रेग्नेंट थीं तब इनके परिवार पर घोर संकट आ गया। बड़े बेटे रणजीत कपूर की काॅलेज पिकनिक थी। इस पिकनिक में पुत्र अन्नू कपूर जो नौ बरस के थे और पुत्री सीमा कपूर छै साल की थी को साथ लेकर कमल जी भी गई थी। पिकनिक चल ही रही थी कि पुलिस की पोशाक पहने कुछ लोग वहां आए और इनके बड़े पुत्र रणजीत कपूर को लेकर जाने लगे। यह देखकर सभी हैरत में पड़ गए लेकिन कमल जी उस व्यक्ति से भिड़ गई कि बेटे को लेकर कहां जा रहे हैं। जब फिरौती मांगी जाने लगी तब मालूम चला कि माधौ सिंह डाकू ने बेटे का अपहरण कर लिया है। बाद में मुखबिर से लगातार संपर्क करके और पैसों का इंतजाम करके लगभग डेढ़ महीने बाद बेटे को सही सलामत छुड़ाकर लेकर आईं। इस दौरान कंपनी को बहुत अधिक घाटा होने लगा था। शिवपुरी में बेटे के जन्म के कुछ समय बाद कमल जी को राजस्थान सरकार की उर्दू टीचर की जाॅब मिल गई। परिवार सहित ये लोग झालावाड़ आ गये। बाद में इसी शहर को अपना नेटिव शहर बना लिया। सबसे छोटे बेटे निखिल यही रहते हैं।
कमल जी मां के रूप में सख्त मिजाज रही हैं। इनकी बेटी सीमा कपूर कहती हैं कि सूर्यास्त के पहले सभी बच्चों का घर में मौजूद रहना आवश्यक था। पिता की गैरमौजूदगी में चारों बच्चों की बेहतरीन परवरिश की। सभी को उच्च स्तरीय साहित्य पढ़ने की आदत के साथ ही सभी भाई-बहनों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत बनाया। जो अभी भी कायम है। कमल जी के सबसे बड़े बेटे रणजीत कपूर तथा दूसरे नंबर के बेटे अन्नू कपूर ने एन एस डी से पढ़ाई की। रंजीत कपूर निर्देशक और पटकथा लेखक हैं, अन्नू कपूर फिल्म कलाकार हैं। बेटी सीमा निर्माता और अभिनेता हैं, छोटे बेटे निखिल लेखक और गीतकार हैं। पौती ग्रुशा कपूर टेलीविजन और फिल्मी दुनिया का चर्चित नाम है।
कमल कपूर शबनम जी ने मुशायरों में काफी बरस पहले ही छोड़ दिया था लेकिन पुणे की येरवडा जेल तथा अन्य जेलों में कैदियों को अपनी रचनाएं सुनाने के लिए अपने आखरी समय तक जाती रहीं। 1989 में पति श्री मदन लाल कपूर की मृत्यु हो गई। उसके कुछ साल बाद मुम्बई में वे अपनी बेटी सीमा के साथ ही रहती थी। झालावाड़ आना जाना करती रहती थीं। एक बार गर्मी में झालावाड़ आने के कुछ समय बाद वापस मुम्बई लौट रही थीं कि उन्हें लू लग गई, जो जान लेवा हो गई। 20 मई 2010 में इनकी मृत्यु हो गई। इनके विशाल सृजन को थोड़ा बहुत समेटते हुए इनके परिजनों ने 2005-06 में एक संग्रह निकाला जिसका नाम है - 'बंद दरवाजों पर दस्तक'
सन्दर्भ स्रोत - सीमा कपूर से वंदना दवे की बातचीत आधारित
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं
© मीडियाटिक
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