सुषमा सिटोके

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सुषमा

सुषमा सिटोके

sushmasitoke@gmail.com

2023-11-07 04:32:25

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जन्म दिनांक : 14 फरवरी, जन्म स्थान: छिंदवाड़ा (मप्र.). 

 

माता: श्रीमती सुधा शर्मा, पिता: श्री पी.एन. शर्मा. 

 

जीवन साथी: श्री आशीष सिटोके. संतान: पुत्र -01. 

 

शिक्षा: एम.ए. (ड्राइंग एंड पेंटिंग- एमएलबी कॉलेज, भोपाल).

 

व्यवसाय: स्वतंत्र कलाकार (पेंटिंग). 

 

करियर यात्रा: 10 वर्षों तक विभिन्न स्कूलों में कला शिक्षक के रूप में कार्य किया. 

 

उपलब्धियां/सम्मान 

• कालिदास राष्ट्रीय पुरस्कार 2008 से सम्मानित

• दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर द्वारा गुरु शिष्य परम्परा योजना में ‘गुरु’ के रूप में चयनित (2008/2009)

• दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र-नागपुर द्वारा 25वीं अखिल भारतीय कला प्रतियोगिता (2011,दमन) पुरस्कृत

• आईफैक्स इंडिया नेशनल अवार्ड (2015)

• भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा फेलोशिप (अगस्त 2018) सहित उनकी कलाकृतियों के लिए उन्हें राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कारों से अनेक बार सम्मानित किया. 

 

प्रदर्शनिया 

एकल प्रदर्शनी- कला परिषद द्वारा, महेश्वर (म.प्र) में आयोजित निमाड़ उत्सव (2011). ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा आयोजित नेशनल ट्राइबल एंड नॉर्थ –ईस्ट आर्ट कॉनक्लेव (28 मार्च से 4 अप्रैल 2017)

संग्रह- खजुराहो संग्रहालय, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार-नई दिल्ली, भारत भवन- भोपाल, म्यूज़ियम ऑफ़ मैन- भोपाल,  आदिवासी लोककला परिषद,भोपाल (150 कलाकृतियां), दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर और इलाहाबाद, कालिदास संस्कृति अकादमी,उज्जैन (एमपी), रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया,भोपाल आदि स्थानों पर कलाकृतियाँ संग्रहीत. 

 

विदेश यात्रा: नेपाल, कनाडा. 

 

रुचियां: पेंटिंग के अलावा पढ़ना, कला सिनेमा और संगीत. 

 

अन्य जानकारी: भारत भवन, भोपाल में स्वयंसिद्धा के बैनर तले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर निमाड़ी और मालवा प्रथागत और पारंपरिक कला तरंगों की एकल प्रदर्शनी का आयोजन 8 मार्च से 23 मार्च 2008 तक किया गया. वे एक पारंपरिक निमाड़ी परिवार से ताल्लुक रखती हैं, इसलिए उनका रुझान निमाड़ी पेंटिंग के पारंपरिक कला की ओर बचपन से ही था. उन्होंने छोटी उम्र से ही अपनी दादी और माता से सहज रूप से ड्राइंग और पेंटिंग सीखना शुरू कर दिया था. बाद में उन्होंने भोपाल में गुरु स्व. श्री किशोर उमरेकर और गुरु एल.एन. भावसार के अधीन ड्राइंग और पेंटिंग का विधिवत अध्ययन किया. उन्होंने पारंपरिक निमाड़ी पेंटिंग को मुख्यधारा में वापस लाने की दिशा में काम करना शुरू किया. वे कई वर्षों से अपनी पारंपरिक शैली को नई और समकालीन अवधारणाओं में विकसित कर रही हैं. ‘कथा चित्र’ उनकी विशेष शैली है जिसमें वे कालिदास के ग्रंथ, बौद्ध चरित्र, रामायण आदि के आसपास की कहानियों का उपयोग करती है और उसे कहानी कहने के माध्यम के रूप में निमाड़ी पारंपरिक शैली में अभिनव दृष्टिकोण के साथ चित्रित करती हैं.