जन्म: 10 मई, स्थान: पितौल (झाबुआ).
माता: श्रीमती लख्खु बाई, पिता: श्री पीदिया बबेरिया.
जीवन साथी: स्व. श्री जोर सिंह. संतान: पुत्र-04, पुत्री-02.
शिक्षा: अशिक्षित. व्यवसाय: कनिष्ठ कलाकार (चित्रकार).
करियर यात्रा: पिता गाँव में एक ख़ास तरह की पिथोरा चित्रकारी करते थे, इसलिए बचपन से ही इनका रिश्ता चित्रकारी से जुड़ गया. उस समय इनके पास रंग-ब्रश कुछ नहीं होते थे, घर की चीज़ों से ही जैसे गेरू, खड़िया, हल्दी से रंग बनाती थी, काले रंग के लिए तवे को खुरच लेती थी, तो पत्तों से हरा रंग बनाकर तरह-तरह के चित्र (कभी मोर, हाथी, चिड़िया तो कभी कुछ और) बना लेती थीं. 17 साल की उम्र में शादी हो जाने के बाद पति के साथ भोपाल आकर भारत-भवन (उस समय भारत भवन का निर्माण-कार्य चल रहा था) में मजदूरी करने लगीं. यहीं उनकी मुलाक़ात चित्रकार और भारत भवन के तत्कालीन निदेशक जगदीश स्वामीनाथन से हुई. बातों-बातों में पता चला कि भूरी बाई अपने गाँव में दीवारों पर चित्र बनाती थीं.स्वामीनाथन ने उन्हें काग़ज, रंग व ब्रश दिए और कुछ चित्र बनाने को कहा. बस यहीं से भूरी बाई की कला यात्रा शुरू हुई. भूरी बाई वर्तमान में भोपाल में जनजातीय संग्रहालय में (भील चित्रकार) कलाकार के तौर पर काम करती हैं.
उपलब्धियां/पुरस्कार
• भारत के अलग-अलग राज्यों में भील आर्ट तथा पिथोरा आर्ट पर -वर्कशॉप
• कला के क्षेत्र में इन्हें मध्यप्रदेश सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार शिखर सम्मान (1986-87)
• देवी अहिल्या बाई सम्मान
• रानी दुर्गावती सम्मानसहित अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं.
विदेश यात्रा: अमेरिका, रुचियां: बागवानी, पेंटिंग करना.
अन्य जानकारी: भूरी बाई अपनी चित्रकारी के लिए कागज तथा कैनवास का इस्तेमाल करने वाली प्रथम भील कलाकार हैं. इनके अधिकांश चित्र भील जीवन और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित होते हैं. इन्होंने अपने बच्चों और नाती-पोतों को भी पिथौरा पेंटिंग बनाना सिखाया है. भारत की इन लोक कलाओं को भूरी बाई ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया है. पिछले कई सालों से जनजातीय संग्रहालय में काम कर रही हैं और यहीं की एक 70 फीट लम्बी दीवार पर इन्होंने अपनी ज़िन्दगी की कहानी को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया है.