जन्म दिनांक : 26 जुलाई 1978, जन्म स्थान: जबलपुर.
माता: श्रीमती माधुरी सुल्लेरे, पिता: स्व. श्री राजेन्द्र प्रसाद.
शिक्षा: एम.ए. (संगीत), संगीतविद, पीएचडी. व्यवसाय: संगीत अनुदेशक/कलाकार.
जीवन यात्रा/करियर यात्रा: संगीत में रुचि के चलते स्कूल संगीत में ही करियर बनाने का निर्णय लिया. कक्षा 11वीं में दौरान संगीत विषय का चुनाव किया. वर्ष 2000 में संगीत विषय (हिंदुस्तानी कंठ संगीत) में एम.ए. और संगीतविद की शिक्षा वर्ष 1998 में इंदिरा कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ से प्राप्त की. इसके बाद ‘म.प्र. की रामधुन एवं बंगाल का कीर्तन, भक्ति संगीत’ विषय में रानी दुर्गावती वि.वि. जबलपुर से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. संगीत शिक्षा प्राप्त कर अनेक मंचों पर गायन प्रस्तुति. वर्ष 2007 में संगीत अनुदेशक के पद पर संभागीय बाल भवन जबलपुर (महिला एवं बाल विकास विभाग म.प्र. शासन) में नियुक्ति के बाद वर्तमान तक सेवायें जारी. बाल भवन में बच्चों को प्रशिक्षित करना, नाटकों में बाल गीतों एवं भक्ति संगीत की रचनाओं में संगीत निर्देशन, मानसिक एवं दिव्यांग बच्चों को विशेष रूप से प्रशिक्षण प्रदान कर रही हैं. राष्ट्रीय छात्रवृत्ति/पुरस्कारों एवं टीवी रियलिटी शो में बच्चों को उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु विशेष रूप से तैयार करने के कार्य में सक्रिय.
उपलब्धियां/पुरस्कार: देश के विभिन्न स्थानों में संगीत एवं नाट्य कला का प्रदर्शन. खजुराहो महोत्सव, विश्व सांस्कृतिक महोत्सव एवं देश में अनेक सांस्कृतिक सम्मेलनों में प्रस्तुतियां. महिला बाल विकास विभाग, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित. स्वच्छता अभियान, बाल विवाह निरोधक, बेटी बचाओ जैसी योजनाओं के प्रचार हेतु अल्बम में संगीत निर्देशन हेतु विशेष रूप से पुरस्कृत.
रुचियां: भारत में प्रचलित सभी प्रकार के संगीत को सुनना, सीखना, आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना, बच्चों एवं युवाओं को कला के प्रति प्रेरित करना, नृत्य करना.
अन्य जानकारी: समाज में कला का विकास हो, इस हेतु जानकी बैंड नाट्यलोक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था के साथ मिलकर (डॉ. शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन में) प्रदेश का पहला महिला बैण्ड ‘श्री जानकी’ का निर्माण किया गया. निर्माण के बाद से ही जानकी बैंड निरंतर अपनी प्रस्तुतियों से खूब सराहना बटोर रहा है. ऐसा पहली बार हुआ है कि सात दिनों तक चलने वाले खजुराहो फेस्टिवल में शहर के किसी कला दल ने निरंतर सातों दिन अपनी प्रस्तुति दी हो. मौलिक संगीत रचनाओं के प्रचार प्रसार हेतु प्रयासरत.